________________
४ - ५ वर्ष शांतिनिकेतन में रहने के पश्चात् मुनि जो अहमदावाद आ गये क्योंकि बंगाल का जलवायु मुनि जी के स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं रहा लेकिन यही से सिंघी जैन ग्रंथ माला का कार्य चलता रहा ।
अहमदाबाद में आकर स्वास्थ्य को आरोग्य लाभ मिलने ही नहीं पाया कि बंबई से अपने जेल निवास के साथी श्री कन्हैयालाल माणिक्य लाल मुंशी का बुलावा आया और आप बंबई आ गये ।
यहाँ आकर मुनि जी भारतीय विद्या भवन के प्रधान आचार्य, सम्मान्य निदेशक हो गये । भारतीय विद्या भवन आज भी समस्त भारत का प्रमुख विद्या केन्द्र है । इस भवन को मुनि जी ने अपना निजी पुस्तकालय भेंट कर दिया । जिस साहित्य निधि का मूल्य रुपयों से प्रांका नहीं जा सकता है ।
भारतीय विद्या भवन में १५ वर्ष तक सम्मान्य निदेशक रहने के पश्चात् अपनी जन्म भूमि मेवाड़ में "प्रताप विश्वविद्यालय" की स्थापना की योजना लेकर आये । इस योजना की तत्कालीन महाराणा भूपालसिंह जी ने सराहना ही नहीं की बल्कि समस्त प्रार्थिक भार स्वयं वहन करने को तैयार हो गये लेकिन यह कार्य देशी राज्यों के विलीनी करण के कारण खटाई में पड़ गया ।
स्वभावतः संस्कारों से मुनि जी मानवीय शरोर श्रम की प्रतिष्ठा के पक्के हामी रहे हैं । इस ध्येय की पूर्ति हेतु चन्देरिया में सर्वोदय स्थापना की ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
मर्यादा और बुढ़ापे में भी आश्रम की
www.jainelibrary.org