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महात्मा गांधी को हुआ तब अहमदाबाद के सावरमती आश्रम में मुनिजी को बुला लिया और यहीं राष्ट्रीय विद्या पीठ की योजना पर गंभीर चर्चा हुई । इस योजना को कार्य रूप देने के लिये बापू के आग्रह पर मुनिजी पूना छोड़ अहमदाबाद आ गये।
सन् १९२० में राष्ट्रीय विद्या पीठ (गुजरात विद्यापीठ) को स्थापना हुई । भाण्डारकर इंस्टीट्यूट के पुरातत्व वेत्ता "गुजरात विद्यापीठ'' के पुरातत्वाचार्य हो गये । सन् १९२० से १६२८ तक यहीं अनवरत अध्ययन, अध्यापन, संशोधन का मार्ग दर्शन करते रहे।
विश्व में जर्मनी ही एक ऐसा देश है जहाँ महाप्राण व्यक्ति निवास करते हैं। इस समय कुछ जर्मनी के विद्वान् भारत आये और विद्यापीठ के प्राचार्य मुनि जी से उनका साक्षात्कार हुआ। यही साक्षात्कार मुनि जी को जर्मनी ले गया। वहाँ मुनि जी जर्मनी के विद्वानों की प्रमुख पंक्ति में
आसान हुये। वे विद्वान भी महाप्राण कर्मठ स्कालर को पाकर श्रद्धान्वित हो गये।
बलिन विश्वविद्यालय में मुनि जी ने कई संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश ग्रन्थों और भारतीय साहित्य और दर्शन पर कई विद्वानों के साथ चर्चा की।
यहीं (बलिन में) भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार की आशा को फलवती करने के लिये १६२६ में “हिन्दुस्तान हाउस' की स्थापना की। बाद में उसी हिन्दुस्तान हाऊस में बैठकर हमारे महान् युवक राष्ट्र नेता सुभाष चन्द्र बोस ने
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