SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञात हुआ कि खण्डहरों में दबे झारखण्डों के शिलालेखों, प्राचीन फटी पुस्तकों, ग्रंथो, पोथियों, ताड़पत्रों को पढ़ते-पढ़ते इनसे प्राप्त कठिनाइयों को झेलते-झेलते हृदय रूखा नहीं हुया वरन् और सरस हो गया है और हृदय से ज्ञान गंगा की अजसुधारा प्रवाहित हो रही है, जिसमें कितने ही शोधार्थी अवगाहन कर तृप्त हो रहे हैं । इनका व्यक्तित्व कभी अनुदार नहीं रहा। अपने ज्ञान को जो बड़ी कठिनाइयों से प्राप्त हुआ, उसे बड़ी उदारता से बांट रहे हैं, दे रहे है और देकर भूल जाते हैं और अनायास आकर कोई कृतज्ञता ज्ञापन करे तो केवल हाँ भर चुप्पी साध लेते हैं। आखों की रोशनी आज जहां पर है वहाँ से कुछ दिखाई नहीं देता लेकिन अंतर की ऊर्जा तो ज्ञानकर्म से और आलोकित हो रही है। इस कर्मठ राष्ट्रीय सन्यासी से कौन अपरिचित हैं ! पूना में भांडारकर ओरियन्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट की सन् १९१८ में स्थापना हुई। संस्था के संस्थापक विद्वानों के आमन्त्रण पर ये जैनमुनि सम्प्रदाय बंधी छोड़ वहाँ की साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक विविध प्रवृतियों में एक जुट होकर लग गये। ___इस मोड़पर जैनमुनि से मानव सेवी, पुरातत्व वेत्ता, राष्ट्रीय सन्यासी हो गये।। उपरोक्त संस्था की कार्य कुशलता का भान जब पूज्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001968
Book TitleJinvijayji ka Vyaktitva aur Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavishankar Bhatt
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages16
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, N000, & N020
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy