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श्रीत्रिपुराभारतीस्तवः भाषा–यदि कोई पुरुष शङ्का करे कि, यह स्तोत्र लघुकवि का अर्थात् बाल कवि का बनाया होने के कारण विद्वज्जनों को अवज्ञास्पद हो जाएगा और इस स्तोत्र का पठन कौन करेगा? तो ग्रन्थकार प्रत्युत्तर देते हैं और अपने बनाये हुए ग्रन्थ के अन्त में अपनी निरभिमानता को प्रकट करते हैं कि, हे परमेश्वरी ! इदं स्तोत्रम् = यह मेरा बनाया हुआ स्तोत्र सावधम् अस्तु = दूषणों से सहित हो यदि वा = अथवा निरवद्यम् = दूषणों से रहित हो अनया चिन्तया किम् = इस विचार से क्या प्रयोजन है? किन्तु मेरा कहना यही है कि यस्य = जिस पुरुष की त्वयि = आप के उपर भक्तिः अस्ति = भक्ति है सः जनः = वह पुरुष तो नूनम् = अवश्य इस स्तोत्र का पठिष्यति = पठन करेगा । यदि कोई पुरुष कहे कि ऐसी उदासीनता है तो फिर तुमने यह स्तोत्र क्यों बनाया ? ग्रन्थकार प्रत्युत्तर देते हुए श्रीभगवती से प्रार्थना करते हैं कि, हे श्री भगवती ! आत्मनि संजायमानम् = मेरे अंतःकरण में प्रकट हुए दृढम् = अत्यन्त दृढ लघुत्वम् = लघुपने को अर्थात् बालकपने को सचिन्त्य अपि = विचार कर के भी यस्मात् हठात् = जिस किसी हठ से ध्रुवम् = निश्चय करके त्वद्भक्त्या मुखरीकृतेन = आप की भक्तिरूप ब्रह्मानन्द के समुद्र में निमग्नचित्त होकर मया आप = मैंने भी रचितम् = यह एक स्तोत्र बना दिया है ॥२१॥
भावार्थ:-ग्रन्थ कर्ता कहते हैं कि, जगदम्बा श्री भगवती की स्तुति करने के लिये तो मेरा सामर्थ्य नहीं है किन्तु श्री भगवती की भक्तिरूप ब्रह्मानन्दरस के पान से परवश होकर मैंने भी अपनी बुद्धि के अनुसार श्रीभगवती की स्तुतिरूप यह स्तोत्र बनाया है । बालकपने को प्रकट किया है। जैसे अपनी माता की गोद में बैठा हुआ छोटा बालक अपनी इच्छानुसार अपशब्द बोलता है तो भी वह माता उस अपने बालक की उक्तियों से बहुत प्रसन्न होती है, इसी प्रकार मूर्ख जनों में शिरोमणि मैं भी यथामति श्रीजगदम्बा भगवती की स्तुति कर रहा हूँ । यदि किसी स्थान पर मेरी गलती भी हो गई हो तो उस मेरी गलती को श्रीजगदम्बा भगवती सुधार लेगी और सब काल में मेरे ऊपर अनुग्रह रखेगी ॥२१॥
इति श्री मल्लध्वाचार्यविरचितः श्री त्रिपुराभारतीस्तवः समाप्तः । व्याख्या—इतीति स्फुटम् । अथ व्याख्याकारकृतश्लोकाः
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