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श्रीत्रिपुराभारतीस्तवः साधक पुरुष वचन सिद्ध हो जाता है ॥९॥ चौदह लाख मन्त्र जपने से साधक पुरुष देवपूज्य हो जाता है ॥१०॥ पन्द्रह लाख मन्त्र का जपने से साधक पुरुष को श्री भगवती एक नारियल देती है जिसको खाने से पुरुष ब्रह्मा के समान देवपूज्य हो जाता है ॥११-१२॥ सोलह लाख मन्त्र जपने से साधक पुरुष को श्री भगवती एक अञ्जन तथा एक वस्त्र और एक कुण्डल देती हैं ॥१३॥ सत्रह लाख मन्त्र जपने से साधक पुरुष धर्म के समान और अठारह लाख जपने से विष्णु के समान हो जाता है ॥१४॥ उन्नीश लाख मन्त्र का जाप करने से साधक पुरुष को श्री भगवती पाशियें देती हैं जिनसे वह पुरुष देवताओं को तथा दैत्यों को बाँध सकता है ॥१५॥ इस अनुक्रम से जो पुरुष पचास लाख मन्त्र जपता है और दशांश से गुग्गुल, दुग्ध, घृत, मधु आदि का होम करता है तो वह पुरुष इन्द्र पदवी को प्राप्त हो जाता है ॥१६-१७॥ एक कोटि मन्त्र का जाप करने से साधक पुरुष परम पद को प्राप्त हो जाता है, इस प्रकार से उत्तम फल देनेवाली यह होम सहित जाप करने की विधि ग्रन्थान्तरों से उद्धृत करके यहाँ साधक पुरुषों के हितार्थ वर्णन की है । इसका विशेष विस्तार गुरुपरम्परा से जान लेना चाहिये ॥२०॥
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