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________________ ज्ञानदीपिकावृत्तिः स्तुति त्रिपुरानामक सरस्वती की स्तुति रूप इयम् = इस लघुस्तव को निपुणम् = सावधानी के साथ बोद्धव्या = जानना चाहिये । कारण कि, यत्र = इस लघुस्तव में स्फुटम् = प्रत्यक्षरूप से आद्यवृत्ते = पहले अर्थात् 'ऐन्द्रस्येव शरासनस्य' इस श्लोक के मध्य एकद्वित्रिपदक्रमेण = पहले दूसरे तीसरे अक्षर पद के अनुक्रम से विशेषसहितः = विशेषता से सहित और सत्सम्प्रदायान्वितः = सद्गुरु के मुखारविन्द से ही जानने योग्य मन्त्रोद्धारविधिः = ऐं क्ली आदि बीजाक्षरमन्त्रों के उद्धार करने की रीति कथितः = कही गई है। अर्थात् श्री भगवती की कृपा से तथा अपने गुरु की कृपा से ही इस श्रीलघुस्तवराज का अतिगूढ़ रहस्यार्थ विदित होता है। श्री भगवती की तथा गुरु की कृपा विना इस लघुस्तवराज का समग्र रहस्य कभी समझ में नहीं आता है। अब ग्रन्थान्तरों में कही हुई पूजाविधि तथा मन्त्रजापविधि लिखते हैं आठ पत्तों का एक कमल भूर्जपत्र पर लिखकर उसके मध्य भाग में श्रीत्रिपुरा भगवती की मूर्ति को या पूर्वोक्त बीजमन्त्रों को स्थापित करे । आठों पत्तों पर आठ लोकपालों के नाम, आठ सिद्धियों के नाम और आठ क्षेत्रपाल आदि के नाम स्थापित करे । उस कमल पर 'द्रा द्रीं क्लीं ब्लूं सः' यह अक्षर लिखना, तदन्तर शोषण, मोहन आदि अपने कार्यानुसार श्वेत, रक्त आदि वर्ण के पुष्पों से उस कमल का पूजन करे । योनि, मुद्गर आदि मुद्राओं की साधना करे । पीछे मूलमन्त्र के कार्यानुसार जाप करने से यथोक्त फल प्राप्त होता है । जैसे कि, ग्रन्थान्तरों में लिखा है । जो पुरुष एक लाख मन्त्र जपता है, उसको राजा लोग वश हो जाते हैं ॥१॥ रक्तमूर्ति का ध्यान करता हुआ जो पुरुष दो लाख मन्त्र जपता है तो उस पुरुष को चक्रवर्ति राजा वश हो जाते हैं ॥२॥ तीन लाख जपने से निस्सन्देह यक्षिणियों का पति हो जाता है ॥३॥ चार लाख जपने से पुरुष पाताल को क्षोभित कर देता है ॥४॥ सदा पाँच लाख जपने से साधक पुरुष को अप्सरायें वश हो जाती हैं ॥५॥ छह लाख मन्त्र का जाप करने से मनोवांछित कार्यसिद्धि हो जाती है और सात लाख मन्त्र जपने से साधक पुरुष विद्याधरों का पति हो जाता है ॥६॥ तथा जो पुरुष आठ लाख मन्त्र जपता है उस पुरुष को श्रीभगवती एक फल देती है जिस को खाने से पुरुष कल्पपर्यन्त अमर हो जाता है ॥७॥ और नव लाख मन्त्र जपने से पुरुष विद्याधरों का स्वामी हो जाता है । दशलाख जपने से पुरुष का शरीर वज्र समान हो जाता है ॥८॥ ग्यारह लाख मन्त्र जपने से मनुष्य रुद्रसमान और बारह लाख जपने से मनुष्य इन्द्रसमान हो जाता है । तेरह लाख मन्त्र जपने से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001966
Book TitleTripurabharatistav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size6 MB
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