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श्रीत्रिपुराभारतीस्तवः
= तव नाम =
नामधेयम्
तत्सर्वं वस्तु तत्त्वतः = परमार्थतः त्रिपुरेति ते अन्वेति अनुगच्छति । त्रयात्मका ये भावास्ते सर्वे त्रिपुरानामान्तर्गता इति । यथा मतत्रयम्, मुद्रात्रयम्, वृक्षत्रयम्, सिद्धित्रयम्, इत्याद्यखिलं भगवत्याः स्वरूपमिदमिति षोडशवृत्तार्थः ॥१६॥
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भाषा - अब ग्रन्थकर्त्ता श्री भगवती के त्रिपुरा नाम में समग्र त्रिसंख्यात्मक वस्तुओं के प्रवेश की उत्प्रेक्षा करते हैं । हे भगवति श्रीत्रिपुरा देवी ! जगति = संसार में यत् किञ्चित् = जो 'कुछ त्रिधा - नियमितम् तीन संख्या से नियमित किया हुआ त्रिवर्गादिकम् धर्म, अर्थ, काम आदि वस्तु वर्त्तमान हैं । तत् सर्वम् = वह समग्र वस्तु तत्त्वतः = यथार्थरूप से त्रिपुरा - इति ते नाम = आप के त्रिपुरा ऐसे नाम में ही अन्वेति = प्रवेश होती है । अर्थात् जो कुछ संसार में त्रिसंख्यात्मक वस्तु हैं, वह सब भगवती के त्रिपुरा नाम से ही उत्पन्न हुई हैं । अब अगणित त्रिसंख्यात्मक वस्तुओं में से कितनेक वस्तुओं के नाम यहाँ गिनाये जाते हैं, जैसे देवानाम्-त्रितयी = तीन देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश । या देवशब्द से गुरु लेना चाहिये जैसे गुरु, परमगुरु, परमेष्ठी गुरु और हुतभुजाम्-त्रयी तीन अग्नि जैसे गार्हपत्य, दक्षिणाग्नि, आहवनीय । या अग्निशब्द से ज्योतिः ली जाती है जैसे हृदयज्योतिः, ललाटज्योतिः, शिरोज्योतिः । शक्तित्रयम् = तीन शक्तियाँ, जैसे इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति, या शक्ति शब्द से देवियाँ ली गई हैं, जैसे ब्रह्माणी, वैष्णवी, रुद्राणी । त्रिस्वराः तीन स्वर जैसे उदात्त, अनुदात्त, स्वरित । या स्वर शब्द से मन्त्रशास्त्रों में कहे हुए षोडश स्वरों में से तीन स्वर लेने चाहिये जैसे अकार, इकार, बिन्दु । त्रैलोक्यम् तीन लोक, जैसे स्वर्ग, भूलोक, पाताल । अथवा लोकशब्द से देहस्थ तीन चक्र लेना चाहिये, जैसे मूलाधार स्वाधिष्ठान मणिपूरक, अनाहत निरोध विशुद्धि, आज्ञा शीर्ष ब्रह्मस्थान । त्रिपदी = तीन पद, जैसे जालन्धर, कामरूप, उड्डीयानपीठ । या पदशब्द से नाथ लेना चाहिये, जैसे गगनानन्द, परमानन्द, कमलानन्द । अथवा त्रिपदीशब्द से तीन पदोंवाली गायत्री लेनी चाहिये, जैसे ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । त्रिपुष्करम् = तीन तीर्थ जैसे शिर, हृदय, नाभि । या पुष्कर शब्द से तीनों पुष्कर लेना चाहिये, जैसे ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर, कनिष्ठ पुष्कर । त्रिब्रह्म = तीन ब्रह्म, जैसे इड़ा, पिङ्गला, सुषुम्णा । या ब्रह्म शब्द से अतीत, अनागत, वर्त्तमान कालको प्रकाशित करनेवाले ब्रह्म कहे गये हैं, जैसे हृदय, व्योम, ब्रह्मरन्ध्र । त्रयः वर्णा = तीन वर्ण, जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या वर्णशब्द से अक्षर लिये गये हैं, जैसे वाग्बीज, कामबीज, शक्तिबीज इत्यादि जान लेना चाहिये ॥ १६ ॥
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