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श्रीत्रिपुराभारतीस्तवः शन्ति । उपसंहारमाह-सा पूर्वोक्तस्वरूपा काचित् वर्णयितुमशक्या अचिन्त्यरूपमहिमा अलक्ष्यरूपप्रभावा त्वं परा शक्तिः गीयसे = कथ्यसे, योगिभिरिति शेषः । ननु शक्तेरपि शिवात्मकत्वात्तन्नाशे तस्या अपि नाश इति चेन्न, शिवव्यतिरिक्तायाः शक्तेः परमार्थमयत्वात्, यदुक्तं मागधीभाषायाम्
शिवशक्ति भेलावह इहु जाणइ सहु कोई । भिन्नी शक्ति शिवांह विणु विरलु बुझइ कोई ॥१॥ इति गर्भार्थसन्दर्भितपञ्चदशवृत्तार्थः ॥१५॥
भाषा-अब, 'श्रीभगवती ही सर्व वाणीस्वरूप और सर्व देवतास्वरूप है'-ऐसे हृदयभावों से स्तवना करते हैं । हे भगवती ! अत्र भुवने = इस चतुर्दशभुवनात्मक ब्रह्माण्ड में शब्दानाम् = रूढ, यौगिक आदि अनेक भेदों से भिन्न समन शब्दों को जननी = प्रकट करनेवाली त्वम् = आप ही हो इति = इसलिये आप वाग्वादिनी उच्यसे = 'वाग्वादिनी [समग्र शास्त्रों के रहस्यों को यथार्थ जाननेवाली] नाम से कहलाती हो । और केशववासवप्रभृतयो अपि देवाः = विष्णु, ब्रह्मा, महेश आदि तथा इन्द्रादिक लोकपाल देवता भी ध्रुवम् = निश्चय ही त्वत्तः = आप से आविर्भवन्ति = उत्पन्न होते हैं । और कल्पविरमे = प्रलयकाल में ते अमी ब्रह्मादयः अपि = वे जगत् की उत्पत्ति, स्थिति, नाश, करनेवाले ब्रह्मा आदि भी यत्र = जिस महामायारूप श्रीभगवती के स्वरूप में लीयन्ते = लीन होते हैं सा = वह काचित् = कोई अचिन्त्यरूपमहिमा = अलक्ष्य स्वरूपवाली त्वम् = आप ही परा-शक्तिः = अखण्ड अनवच्छिन्न शक्ति नाम से गीयसे = शास्त्रों में वर्णन की जाती हो अर्थात् समग्र शास्त्रों की तथा समग्र जगत् की सृष्टि, स्थिति, नाश करनेवाली जो अविनाशिनी शक्ति है, वह श्रीमद्भगवती त्रिपुरा ही है ॥१५॥
१. इस विशेषण से ज्ञात होता है कि, समस्त वेद, वेदान्त, काव्य, कोश अलङ्कार, न्याय,
वैशेषिक आदि शास्त्र श्री त्रिपुरा देवी से ही उत्पन्न हुए हैं। २. यदि कोई वादी शङ्का करे कि, शक्ति शिवात्मक होने से शिव का विनाश होने पर शक्ति
का भी नाश होना सम्भव है। यहाँ यह प्रत्युत्तर देना चाहिये कि, जो अखण्ड अनवच्छिन्न अविनाशिनी शक्ति है वह शिवात्मक नहीं है अर्थात् वह शिव से व्यतिरिक्त है, जैसे ऊपर मागधी भाषा में लिखा है ।
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