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श्रीत्रिपुराभारतीस्तवः प्रीता भगवती सर्वसिद्धि सम्पादयति । अग्निप्रतिष्ठामन्त्रश्चायम्
मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमितमं नोत्वरिष्टम्
यज्ञं तमिमं दधातु विश्वेदेवा स इह मादयन्तां मां प्रतिष्ठा इति ।। विस्तरस्त्वस्य गुरुमुखाज्ज्ञेयः । इति चतुर्दशवृत्तार्थः ॥१४॥
भाषा-इतने ग्रन्थ से श्रीभगवती की पूजा के फल को कहकर अब होम' का फल बताते हैं । हे देवि = दिव्य स्वरूपवाली ! त्रिपुरे = श्रीभगवती विप्राः = ब्राह्मण, क्षोणिभुजः = क्षत्रिय, विशः = वैश्य, तदितरे = शूद्र यह चारों वर्गों के लोगों में से जो कोई पूजाविधौ = पूजा करने के समय में त्वाम् = आप को क्षीराज्यमध्वैक्षवैः = दूध, घृत, सहद, शक्कर आदि मधुर पदार्थों से सन्तर्प्य = तृप्त करते हैं अर्थात् आप को समर्पण किये हुए इन पूर्वोक्त हव्य वस्तुओं को जो कोई पुरुष अग्निकुण्ड में होमते हैं ते एव = वे होम करनेवाले पुरुष ही तरसा = शीघ्र ही विनैः अविजीकृताः = तमाम उपद्रवों से रहित हो जाते हैं । स्थिरधियाम् = स्थिर बुद्धिवाले तेषाम् = उन पुरुषों का मनः = चित्त यां यां = जिस जिस सिद्धि को प्राथर्यते = चाहता है तां तां सिद्धिम् = उस उस मनोवाञ्छित सिद्धि को वे पुरुष ध्रुवम् = निश्चय ही अवाप्नुवन्ति = प्राप्त करते हैं ॥१४॥
१. किंचिन्मात्र होम करने की विधि कहते हैं-साधक पुरुषों को चाहिए कि, प्रथम छह कोणवाला
या चार कोणवाला या गोल आकारवाला अर्द्धचन्द्राकारवाला या कोई दूसरे शास्त्रोक्त आकारवाला एक हाथ का अग्निकुण्ड बनावे और उसका शोधन, क्षालन, पावन, शोषण करके उस कुण्डोकी चारों तरफ शङ्करआदि देवताओं की मूर्तियों को स्थापित करे। तदनन्तर उस कुण्डके मध्य भाग को दर्भसंयुक्त पवित्र जलसे सींचकर और पुष्प, धूप आदि षोडश उपचारों से पूजकर उस स्थानपर श्रीभगवती का स्मरण करके सूर्यकान्तमणि से या काष्ठमथन से या ब्रह्मचारी के आश्रम से अग्नि को लाकर सुवर्ण के या ताम्बे के या मिट्टी के पात्र में उपरोक्त प्रतिष्ठामन्त्र से स्थापित करे, बाद में पूर्वोक्त मुख्य मन्त्र से अग्नि में प्रथम सात घृत की आहुति दे, तदनन्तर अपने कार्यानुसार मन्त्र उच्चारण करता हुआ पूर्णाहुतिपर्यन्त अपने दाहिनी ओर स्थित दूध, घृतआदि होम के द्रव्यों को एक एक चिलू जुहू से होमता जाते । इस विधि से जो पुरुष होम करता है उस पुरुष के सम्पूर्ण मनोरथों को श्रीभगवती सफल कर देती है। इस होम करने का विशेष विस्तार अपने गुरु के मुखारविन्द से जान लेना चाहिये ।
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