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श्रीत्रिपुराभारतीस्तवः
रौद्रशब्दोपादानमिति त्रयोदशवृत्तार्थः ॥१३॥
भाषा — श्रीभगवती की पूजा के प्रभाव को दिखाते हैं । हे चण्डि ! दुराराध्या श्रीभगवती ! येषां = जिन पुरुषों के कराः = हाथ त्वच्चरणाम्बुजार्चनकृते: = आप के चरणारविन्दों की पूजा के लिये बिल्वीदलोल्लुण्ठनात्= बिल्वपत्रों को तोड़ने को और त्रुटयत्कण्टककोटिभिः = टूटते हुए उन बिल्वीपत्रों के कण्टकों के अग्रभागों से परिचयम् = मिलाप को न जग्मुः = नहीं प्राप्त हुए हैं अर्थात् जिन पुरुषों के हाथों में श्रीभगवती की पूजा के निमित्त बिल्वपत्रों को तोड़ते समय उन पत्रों के तीक्ष्ण काँटे नहीं चुभे हैं । ते वे पुरुष दण्डाङ्कुशचक्रचापकुलिश श्रीवत्समस्याङ्कितैः = गदा, अंकुश, चक्र, धनुः, वज्र, श्रीवत्स, मत्स्य इन चिह्नों की रेखाओं से युक्त, अम्भोजप्रभैः = कमल के समान कोमल पाणिभिः = हाथों से उपलक्षित हो कर कथम् इव पृथिवीभुजः जायन्ते = पृथ्वीपति राजा कैसे हो सकते हैं । अपितु किसी प्रकार से नहीं हो सकते हैं । अर्थात् श्रीभगवती की पूजा के प्रभाव से ही पूर्वोक्त चिह्नों की और राज्य की प्राप्ति होती है अन्यथा नहीं ॥१३॥
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