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ज्ञानदीपिकावृत्तिः एवम्भूता भगवती कवित्वसिद्धये ध्यातव्येति सप्तमवृत्तार्थः ॥७॥
भाषा-अब अनुक्रमागत सरस्वती के बीजाक्षर की सिद्धि के लिये तदुपयोगिनी श्रीभगवती की मूर्ति का ध्यान वर्णन करते हैं । वामे = एक बाँयें हाथ में पुस्तकधारिणीम् = पुस्तक को धारण करती हुई और दूसरे बाँयें हाथ से अभयदाम् = सर्वजनों को अभयदान देती हुई । दक्षिणे = एक दहिने हाथ में साक्षस्त्रजम् = अक्षमाला को धारण करती हुई और दूसरे दहिने हाथ से भक्तेभ्यः = वरदानपेशलकराम् अपने भक्तजनों को वरदान देती हुई । कर्पूरकुन्दोज्ज्वलाम् = कपूर तथा कुन्दपुष्प के समान गौर वर्णवाली । उज्जृम्भाम्बुजपत्रकान्त-नयन स्निग्धप्रभालोकिनीम् = विकसित कमल के पत्तों के समान मनोहर सानुग्रह दृष्टि से अपने भक्तों को देखती ऐसी त्वाम् = आप की मूर्ति को हे अम्ब = माता श्रीभगवती ! ये = जो पुरुष मनसा चित्त की शुद्धि से न शीलयन्ति = नहीं भजते हैं । तेषाम् = उन पुरुषों को कवित्वम् = पण्डिताई कुतः कहाँ से हो ? अर्थात् कदापि नहीं हो ॥७॥
भावार्थः-कवित्व शक्ति की सिद्धि के लिये साधक पुरुष अक्षमाला और पुस्तक को धारण करती हुई तथा भक्तजनों को वरदान और सर्वजनों को अभयदान देती हुई उज्ज्वल वर्णवाली तथा विकसित कमल के पत्र समान मनोहर नेत्रोंवाली चतुर्भुजा श्रीसरस्वती देवी की मूर्ति का ध्यान करे । और पूर्वोक्त सरस्वती के बीजाक्षर मन्त्र का जाप करे ॥७॥
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