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ज्ञानदीपिकावृत्तिः आद्यं बीजं मध्यमे मध्यमादावन्त्यं चादौ योजयित्वा जपेद्यः । त्रैलोक्यान्तःपातिनो भूतसङ्घा वश्यास्तस्यैश्वर्यभाजो भवेयुः ॥१॥ आद्यं कृत्वा चावसानेऽन्त्यबीजं मध्ये मध्यं चादिमे साधकेन्द्रः । सद्यः कुर्याद्यो जपं पापमुक्तो जीवन्मुक्तः सोऽश्नुते दिव्यसिद्धिम् ॥२॥
इत्यादि सर्वबीजलभ्यविशेषफलानि तत्तद्ग्रन्थेभ्यो ज्ञेयानि, अत एवोक्तम्यं यं कामं = वश्याकृष्टि-पौष्टिक-स्तम्भन-मोहन-वशीकरण-मारणोच्चाटनशान्त्यादिकं ध्याताभिप्रैति, एषां बीजानां प्रभावात् सर्वं सफलीभवतीति षष्ठवृत्तार्थः ॥६॥
भाषा-हे देवि श्रीभगवती ! यं यं कामम् = अपेक्ष्य = जिस जिस कामना की अपेक्षा से अनघम् = दूषणों से रहित एकैकम् = एक एक तवबीजम् = आपके पूर्वोक्त बीजाक्षर को येन केनापि विधिना = कोई भी विधि से चिन्तितम् = स्मरण किया है या जप्तम् = जपा है तो नृणाम् = उन मनुष्यों की तम्-तम् समस्तम् = उस उस समग्र कामनाओं को तरसा = तत्काल आप सफलीकरोति = सफल करती हो, चाहे साधक पुरुष उन बीजाक्षरों को सव्यञ्जनाव्यञ्जनम् = व्यञ्जनों के साथे जपे, जैसे ऐं क्लीं सौं । या व्यञ्जनों करके रहित जपे, जैसे ऐ, ई, औ और चाहे उन बीजाक्षरों को कूटस्थम् = बहुत अक्षरों से मिले हुए जपे जैसे सौं हस्क्ली हस्सौँ यदि वा अथवा पृथक् उन बीजाक्षरों को अलग अलग जपे जैसे ऐं क्लीं सौं । या झै-हस्क्लीं -हस्सौँ । यद्वा = अथवा व्युत्क्रमात् स्थितम् = विपरीत रीति से स्थित हुए उन बीजाक्षरों का जाप करे । जैसे हैं-स्क्ली स्हसौं । या ऐं क्लीं सौं । वा क्लीं ऐं सौँ । वा क्लीं सौँ एँ । या सौं ऐं क्ली । या सौं क्लीं ऐं इत्यादि ॥६॥
भावार्थ:-इन पूर्वोक्त ऐं क्लीं सौं बीजाक्षरों को कोई भी रीति से जपनेवाला साधक मनोवाञ्छित सिद्धियों को प्राप्त हो जाता है। और हसैं-हस्क्ली हस्सौं-महात्रिपुरभैरवीं नमः । यह श्रीभगवती का चिन्तामणि नाम बड़ा चमत्कारिक मन्त्र है । इन मन्त्र का शास्त्रोक्त विधि से साधन करने से साधक पुरुष को कोई वस्तु दुर्लभ नहीं रहेती है ॥६॥
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