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श्रीत्रिपुराभारतीस्तवः सिद्ध होता है । अस् औ:तु सौ बीजाक्षर के सकार के छोड़कर शेष जो औ ऐसा अक्षर रहता है वह सरस्वतीम् अनुगतः = सरस्वती का बीजाक्षर होने से वः = आप लोगों के अर्थात् साधक पुरुषों के मूर्खतारूप जल को सुखा देता है। अब इस औ बीजाक्षर का सरस्वती से सम्बन्ध होने में प्रमाण कहते है यः = जो गौः शब्दः = गौः ऐसा शब्द गिरि वर्त्तते = शास्त्रों में सरस्वती का वाचक है । इस वास्ते सः वह गं-विना = गकार विना ही सिद्धिदः = सिद्धियों को देनेवाला है अर्थात केवल औ ऐसा बीजाक्षर सरस्वती से सम्बन्धित होने के कारण साधक पुरुषों को सिद्धि देनेवाला है ॥५॥
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