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बनाकर गुप्त रखी है। त्रिपुरास्तोत्र में या कोई भी तान्त्रिक स्तोत्र में मन्त्रादि विधान को गुप्त रखा जाता है ।
त्रिपुराभारतीस्तव में भगवती त्रिपुरा के विविध स्वरूप, मन्त्राक्षर, साधनाविधि, ध्यान और उपासना फल का वर्णन है ।
स्तोत्र का संक्षिप्त विषय दर्शन यहाँ प्रस्तुत है ।
(पद्य-१) प्रथम तीन पाद में त्रिपुरादेवी के तीन मन्त्रबीजाक्षरों का उद्धार है 'ऐन्द्रस्य' पद में ऐं बीज है । शौक्लीं पद में क्लीं बीज है । एषासौ पद में सौं बीज है । यही त्रिपुरादेवी का मूलमन्त्र है । (त्रिपुरामूलमन्त्रो ज्ञेयः)। इन मन्त्राक्षरो साथ स् और ह् वर्ण का संयोग होने से कूटाक्षर बनते है । मूलस्थ 'सहसा' पद से इस बात का निर्देश मिलता
(पद्य २-३-४) द्वितीय-तृतीय और चतुर्थ पद्य में तीन बीजाक्षरों के माहात्म्य का वर्णन है । ऐंकार का ध्यान करने से संसार के दुःखो से मुक्ति मिलती है । ऐंकार ज्ञानशक्ति का बीज है । ऐ उसका सङ्केत पद है । ऐंकार साक्षात् कुण्डलिनीशक्ति स्वरूप है । विश्व के समस्त व्यापार का संचालन मात्रारूप कुण्डलिनी शक्ति द्वारा होता है । अज्ञान-आश्चर्य या आतंक के कारण अनुस्वार रहित 'ऐ' पद के उच्चारण से अमृत के समान मधुर वाणी का प्रसाद प्राप्त होता है । ललाट स्थान में आज्ञाचक्र पर मेघधनुष्य के समान वर्णयुक्त ऎकार ध्येय है ।
क्लींकार कामराज बीज या इच्छाशक्ति बीज है । ई उसका संकेत
२. यतो न सर्वं गुह्यमेकमुष्ट्या प्रदेयं गुरुभिः ॥२॥
विस्तरस्त्वस्य गुरुमूखाज् ज्ञेयः ॥१४॥ गुरुपरम्परातोऽवसेयाः ॥१७॥ सम्प्रदायान्वितो युक्तोऽयं मन्त्रोद्धारः ॥२०॥
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