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पद है । यह बीज गूढ और महाप्रभावशाली है । विरल पुरुष को यह प्रभाव अनुभव में आता है। यह मंगल स्वरूप है । हरेक शुभकार्य में उसका स्मरण लाभदायी है । ब्रह्मरंध में सहस्रारचक्र पर श्वेतवर्णीय क्लीकार ध्येय है ।
सौं कार प्रेतबीज या क्रियाशक्ति का बीज है । 'औ' उसका संकेत पद है । यह बीज तत्कालवचनप्रवृत्तिरूप फल देता है । यह बीज का ध्यान जडता को नष्ट करता है । हृदय में विशुद्धिचक्र पर सूर्य समान रक्तवर्णीय सौंकार ध्येय है।
(पद्य-६) यह तीन बीज महाचमत्कारी है। कोई भी विधि से ध्यान करने पर मनोवांछित फल देने में समर्थ है । तीन बीजो का छ: प्रकार से ध्यान होता है-सव्यंजन, अव्यंजन, कूटस्थ,-पृथक्, क्रम, और व्युत्क्रम । माहात्म्य के दर्शक इन पदो का तान्त्रिक अर्थ रहस्यपूर्ण है । व्याख्याकार सूरिदेवने रहस्य को भलीभाँति स्पष्ट किया है ।
भगवती श्री त्रिपुरादेवी के बीजाक्षर रूप मन्त्र ध्यान के बाद स्वरूप ध्यान का वर्णन अग्रिम पाँच पद्य में है ।
(पद्य-७) विद्वत्ता की प्राप्ति के लिये । गौर वर्णीय भगवती की मूर्ति का ध्यान करना चाहिये । विद्वत्ता के हरेक प्रकार श्रीत्रिपुरा की कृपा से सिद्ध हो जाते है । कवित्व शक्ति प्रदायक ध्येय स्वरूप इस प्रकार का है । देवी के देह की कांति मचकुंद पुष्प के समान शुक्ल है, देवी की चार भुजा है, बायें हाथो में पुस्तक और अभयमुद्रा है, दाहिने हाथ में अक्षसूत्र है और आशीर्वाद मुद्रा है । कमलपत्र के समान नेत्र से करुणा की धारा बरसती है। [साधरणतः सरस्वती की मूर्ति में चार भुजा होती है। दो भुजा में देवी वीणा धारण करती है ऐसा देखने मिलता है । जैन शास्त्र के मुताबिक सरस्वती मचकुंद के पुष्प, पूर्णिमागत चंद्र, गाय का दूध, जलबिंदु के समान श्वेत वर्ण युता है । वह एक हाथ में सरोज और एक हाथ में पुस्तक धारण करती है । और कमल के आसन पर बिराजित है (कुंदिंदु-गोक्खीर-तुसार वण्णा
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