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________________ क्राथन = मृतवत् सोना, स्पंदन = भूताविष्ट प्राणी की तरह शरीर को जोरों से हीलाना, भेदन = पंगु की तरह चलना, शृंगार = कामी स्त्री पुरुष की तरह विलास, अवितत्ककरण = विवेकहीन व्यक्ति की तरह लोकनिंद्य कार्य, अवितथभाषण = यद्वातद्वा भाषण । मुख्य विधि का उपकारी अनुस्नान, आचमन-शुचिता-नैमित्तिक भस्मस्नान-निर्माल्यधारण इत्यादि गौण विधि है। तन्त्रशास्त्रोक्त साधनामार्ग का यह दिङ्मात्र दर्शन है । इस विमर्श में अब तक जिस अर्थ में 'तन्त्र' शब्द का प्रयोग हुआ है । वह दार्शनिक किंवा सैद्धांतिक है । तन्त्र शब्द शास्त्रीय संदर्भ में जिस अन्य अर्थ में प्रयुक्त होता है वह है मन्त्र-यन्त्र इत्यादि का प्रयोग । स्पष्टता से दोनो का भेद समज ने के लिये संज्ञा भेद करना आवश्यक है। दार्शनिक संदर्भ में 'तन्त्रदर्शन' शब्द का व्यवहार और मन्त्रादि के संदर्भ में 'तन्त्रप्रयोग' शब्द का व्यवहार करने से सादृश्य की भ्रान्ति नहीं होगी । तन्त्र प्रयोग : ___ सामान्य मानव अपने मन में अनेकविध आकांक्षा लेकर जीवन व्यतीत करता है । आकांक्षा की पूर्ति के लिये द्रव्योपार्जनादि प्रवृत्ति करता है । जब भौतिक संसाधनों से उसकी मानसिक आकांक्षा पूर्ण नहीं होती या फिर उसे ऐसी संभावना नहीं दिखती तब उसके पैर सहसा अभौतिक संसाधनों की और मूडते है । मनुष्य से अधिक अभौतिक शक्ति से सम्पन्न जीवात्मा जिसे लिये 'देव' शब्द का प्रयोग होता है—'उनकी सहाय पाकर ऐहिक आकांक्षा की पूर्ति करना' इसी सिद्धांत के आधार पर तन्त्र-प्रयोग का प्रवर्तन हुआ है । तन्त्र प्रयोग में आत्मिक उत्कर्ष या विशुद्धि का कोइ संदर्भ नहीं है । तन्त्र दर्शन और तन्त्र प्रयोग में जो वैषम्य है उसको समज लेना आवश्यक तन्त्रदर्शन तन्त्रप्रयोग आध्यात्मिक है भौतिक और दैविक है 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001966
Book TitleTripurabharatistav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size6 MB
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