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________________ (अद्वैत वेदांत में माया को ब्रह्म का विकार माना गया है । शैवदर्शन द्वैतवादी है । माया शिव से अतिरिक्त है और सांख्य के प्रकृतितत्त्व की तरह जगदुत्पत्ति का मूल है ।) रोधशक्तिपाश : मल - कर्म और माया में जो आवरण शक्ति है उसे 'रोधशक्ति' कहते है । आत्मा की हक्क्रिया शक्ति और पाश की रोधशक्ति परस्पर विरूद्ध है । यह एक नकारात्मक शक्ति है और पाश का अधिष्ठान करके कार्य करती है । स्वतन्त्र न होने के कारण रोधशक्ति को औपचारिक पाश कहते है । " मल-कर्म-माया और रोधशक्ति इस चार पाश से 'पशु' बद्ध है । पाश के कारण जीवात्मा की दृक्शक्ति और क्रियाशक्ति आच्छादित-कुंठित-आवृत्त है । मल का परिपाक होने से पाशगत रोधशक्ति का ह्रास होता है । रोधशक्ति को ह्रास होने पर विद्यमान पाश भी अविद्यमान तुल्य बन जाते है । ऐसे जीवात्मा पर परमेश्वर पति शिव का अनुग्रह होता है और उसे मन्त्रेश्वर पद मिलता है । मलादि पाशों का पूर्ण परिपाक हो जाने पर रोधशक्ति का पूर्ण नाश होता है । ऐसा जीव मोक्षाधिकारी है । परमेश्वर गुरुमूर्ति का अधिष्ठान करके जीवात्मा को दीक्षा प्रदान करता है और मुक्ति देता है । ! यह शैव मत का संक्षिप्त दार्शिनक स्वरूप है । पाशगत रोधशक्ति के नाशक उपायो का वर्णन नाकुलीश पाशुपत और शैवदर्शन में एक ही है । नाकुलीशपाशुपत मत में पाशमुक्ति के उपायभूत पाँच पदार्थ का ज्ञान आवश्यक माना जाता है । कार्य-कारण- योग - विधि - दुःखान्त । इन पाँच पदार्थो में से यहाँ तृतीय और चतुर्थ योग और विधि उपाय प्रस्तुत है । I १. बलं रोधशक्तिः । अस्याः शिवशक्तेः पाशाधिष्ठानेन पुरुषतिरोधायकत्वाद् उपचारेण पाशत्वम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001966
Book TitleTripurabharatistav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size6 MB
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