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(५) सर्वज्ञताशक्ति : सर्व वैश्विक पदार्थो का संक्षेप और विस्तार से
कार्यकारणादि तत्त्व के रूप में ज्ञान । क्रियाशक्ति :
क्रियाशक्ति के तीन औपचारिक भेद है।
मनोजवित्व शक्ति = क्रिया में गति की शक्ति (Speed) । (निरतिशयशीघ्रकारित्वम्)
कामरूपित्व शक्ति = शरीरेन्द्रियादि का रूपांतरण करने की शक्ति ।
विकरणमित्व शक्ति = शरीरादि का उपसंहार होने के बाद भी ऐश्वर्य धारण करने की शक्ति ।
(दार्शनिक जगत में शक्ति की अवधारणा प्रचलित है । न्याय मन शक्ति को अतिरिक्त पदार्थ के रूप में स्वीकार नहीं करता, मीमांसा के अनुसार शक्ति स्वतन्त्र पदार्थ है ।) कर्मपाश :
'जीवात्मा फल के उद्देश्य से प्रवृत्ति करता है।' उस प्रवृत्ति को कर्म कहते है। वह अनादि है । धर्म और अधर्म उसके दो भेद है । जीवात्माओं द्वारा अनुभूत फल वैचित्र्य कर्मनामक पाश के कारण से है ।' मायापाश :
माति याति चास्मिन् सर्वम् इति माया ।
प्रलयकाल में प्रत्येक पदार्थ का समावेश माया में होता है और सृष्टि काल में प्रत्येक पदार्थ की उत्पत्ति माया से होती है । जगत की मूलभूत प्रकृति का नाम 'माया' है। माया से ही कलादि तीस तत्त्वो का जन्म होता है।
१. क्रियते फलार्थिभिरिति कर्म धर्माधर्मात्मकं बीजाङ्करवत् प्रवाहरूपेण अनादि । २. माति अस्यां शक्त्यात्मना प्रलये सर्वं, जगत्सृष्टौ व्यक्तिम् आयाति इति माया ।
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