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विज्ञानाकल :
परमेश्वर के स्वरूप का विज्ञान होने से जिस अकल अवस्था की प्राप्ति होती है उसे विज्ञानाकल कहते है । उस अवस्था में जीवात्मा तीन पाश से मुक्त हो जाता है, केवल 'मल' नामक पाश से बद्ध होता है । जब मलगत रोधशक्ति का नाश हो जाता है तब मलका परिपाक होता है । जैसे जैसे मलका परिपाक होता है, जीवात्मा के स्वरूप को आवरण करनेवाली शक्ति का नाश होता है । जिस जीवात्मा का मल परिपक्व हो चूका है उन पर परमेश्वर का अनुग्रह होता है । ईश्वर उन्हें विद्येश्वर पद का दान करता है । जिनका मल परिपक्व नही हुआ उन्हें 'मन्त्र' पद प्रदान करता है । कर्म और शरीर से मुक्त, लेकिन मल से युक्त जीवात्मा को 'मन्त्र' ऐसी विशेष संज्ञा प्राप्त है । प्राकृत जीवात्मा से इनकी शक्ति अधिक होती है । वे सात कोटि संख्या में है और इतर जीव पर अनुग्रह करने की शक्ति से सम्पन्न है ।
इस तरह पशु तत्त्व के पाँच भेद है ।
१. सकल = संसारवर्ति जीवात्मा ।
२. अपक्वकलुष प्रलयाकल भविष्य में संसारगामि जीवात्मा । ३. पक्वकलुष प्रलयाकल = भविष्य में मोक्षगामि जीवात्मा ।
४. असमाप्तकलुष विज्ञानाकल
= मन्त्रपद प्राप्त जीवात्मा ।
५. समाप्तकलुष विज्ञानाकल = मुक्त जीवात्मा ।
पाश :
=
'पशु' तत्त्व का पारमार्थिक बोध होना, 'पाश' तत्त्व के बोध विना
१. तत्र प्रथमो द्विप्रकारो भवति समाप्तकलुषासमाप्तकलुषभेदात् । तत्राद्यान् कालुष्यपरिपाकवतः पुरुषधौरेयान् अधिकारयोग्यान् अनुगृह्य अनन्तादि-विद्येश्वराष्टपदं प्रापयति । अन्त्यान् सप्तकोटिसङ्ख्यातान्मन्त्रान् अनुग्रहकरणान् विधत्ते ।
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