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असंभव है । पाश तत्त्व, पशुत्व से संबद्ध है । 'बंधन' पाशपद का सामान्य अर्थ है । शिवस्वरूप जीवात्मा की पशुता के कारणभूत पाश चार प्रकार के
मलपाश, कर्मपाश, मायापाश, रोधशक्ति पाश (अन्यत्र पाँच पाश का भी वर्णन मिलता है । "बिंदु' इस पाश का नाम है । माया स्वरूप है । चारों पाश की विमुक्ति के पश्चात् 'बिंदु' नामक पाश से बद्ध होने पर भी जीव मुक्त हो जाता है, केवल यह मुक्ति गौण है । यह पाश विद्येश्वर पद प्रदाता है । विद्येश्वर पद्य अपर मुक्ति है। पर मोक्ष शिवतत्त्व प्राप्ति है। वस्तुतः इस पाश में बंधनशक्ति भाव नही है । इसलिये उसको पाश में नहीं गिना जाता) । मलपाश :
जीवात्मा स्थित अनादि दुष्टभाव को 'मल' कहा जाता है । मल के पाँच प्रकार है।
१. मिथ्याज्ञान २. अधर्म दोनों के अर्थ स्पष्ट है । ३. सक्तिहेतुः विषयसंनिधानादि विषयासक्तिजनककारणकलाप ४. च्युतिः सदाचार से भ्रष्ट होना ५. पशुत्वमूलः पशुता प्रापक अनादि संस्कार ।।
'मल' जीवात्मा की स्वाभाविक ज्ञान शक्ति को और क्रियाशक्ति को आवृत्त करके निष्क्रिय कर देता है । जिस तरह 'तुष' चावल के मूल स्वरूप का आच्छादन करता है । 'कालिमा' तांबे की चमक को ढंक देती है उसी
१. अर्थपञ्चकं पाशाः ।
२. आत्माश्रितो दुष्टभावो मलः । स च मिथ्याज्ञानादि भेदात् पञ्चविधः । मिथ्याज्ञानमधर्मश्च सक्तिहेतुश्च्युतिस्तथा । पशुत्वमूलं पञ्चैते तन्त्रे हेया विविक्तितः ।
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