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________________ ( १०७ ) प्रत्यक्ष है। अर्थात् यहाँ कर्म का अभिप्राय मात्र प्रत्यक्ष प्रवृत्ति नहीं अपितु प्रत्यक्ष कर्म जन्य संस्कार है। बौद्ध परिभाषा में उसे वासना और अविज्ञप्ति कहते हैं। मानसिक क्रियाजन्य संस्कार-कर्म-को वासना और वचन एवं काय जन्य संस्कारकर्मको अविज्ञप्ति' कहते हैं। ___ यदि तुलना करना चाहें तो कह सकते हैं कि बौद्ध सम्मत कर्म के कारणभूत रागद्वेष एवं मोह जैन सम्मत भाव कम हैं। मन, वचन, काय का प्रत्यक्ष कर्म जैनमत में मान्य योग है और इस प्रत्यक्ष कर्म से उत्पन्न वासना तथा अविज्ञप्ति द्रव्य कर्म हैं। विज्ञानवादी बौद्ध कर्म को वासना शब्द से प्रतिपादित करते हैं। प्रज्ञाकर का कथन है कि जितने भी कार्य हैं, वे सब वासना जन्य हैं। ईश्वर हो अथवा कर्म (क्रिया), प्रधान (प्रकृति) हो या अन्य कुछ, इन सब का मूल वासना ही है। न्यायी ईश्वर को मानकर यदि विश्व की विचित्रता की उपपत्ति की जाए तो भी वासना को स्वीकार किए बिना काम नहीं चलता। अर्थात् ईश्वर, प्रधान, कर्म इन सब नदियों का प्रवाह वासना समुद्र में मिल कर एक हो जाता है। शून्यवादीमत में माया अथवा अनादि अविद्या का ही दूसरा नाम वासना है। वेदान्त मत में भी विश्व वैचित्र्य का कारण अनादि अविद्या अथवा माया है। १ अभिधर्मकोष चतुर्थ परिच्छेद; Keith Buddhist Philosophy p. 203 २ प्रामाणवातिकालंकार पृ० ७५-न्यायावतारवातिकवृत्ति की टिप्पणी पृ० १७७-८ में उद्धृत ।। 3 ब्रह्मसूत्र-शांकरभाष्य २.१.१४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only , www.jainelibrary.org
SR No.001965
Book TitleAtmamimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
Publication Year1953
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Epistemology, & Religion
File Size8 MB
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