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________________ प्रध्याय 31 ] लघुचित्र साक्ष्य प्रस्तुत करती है कि 'समृद्धि शैली" का प्रारंभ चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध और पंद्रहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में गया था । यद्यपि इनके विषय में कुछ विशेष रूप से कहना उपयुक्त नहीं है तथापि सामान्यतः यह कहा जा सकता है कि कागज पर चित्रित ये पाण्डुलिपियाँ अच्छे स्तर की हैं । इन पाण्डुलिपियों के निर्माण-केंद्र मुख्य रूप से गुजरात के अनेक नगर रहे हैं, जैसे पाटन, अहमदाबाद, भड़ौच आदि । साथ ही राजस्थान के कई नगर भी इनके केंद्र रहे हैं परंतु इन चित्रों की शैली इन्हीं क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रही । माण्डू में सन् १४३५-१४४० के मध्य दो उत्तम सचित्र पाण्डुलिपियों की रचना हुई, जिनके चित्रों में स्थानीय प्रभावों को अच्छा स्थान मिला है । पाण्डुलिपियाँ यद्यपि गुजरात की चित्रित श्रेष्ठ पाण्डुलिपियों से अधिक सुंदर नहीं हैं तो भी ये उनके समान स्तर की तो निश्चित रूप से हैं ही । माण्डू में चित्रित कल्प- सूत्र की पाण्डुलिपि, जिसकी तिथि सन् १४३६ है, इस समय राष्ट्रीय संग्रहालय में सुरक्षित है2 और कालकाचार्य - कथा की पाण्डुलिपि स्वर्गीय मुनि पुण्यविजयजी के संग्रह में थी जिसके लिए भी लगभग यही समय निर्धारित किया जा सकता है । जहाँ कहीं भी संपन्न जैन समुदाय रहा है वहीं पर सचित्र जैन पाण्डुलिपियों की माँग बढ़ती हुई पायी गयी है । माण्डू की पाण्डुलिपियाँ यद्यपि परंपराबद्ध हैं और संप्रदायगत श्रावश्यकताओं की पूरक हैं तथापि इनमें नवीन प्रवृत्तियाँ स्पष्टतः परिलक्षित हैं । इनके चित्रकारों ने यद्यपि शांतिप्रद रंग योजना का उपयोग किया है तथापि उन्हें चमकदार रंगों के उपयोग करने की निपुणता प्राप्त रही है । सन् १४३६ के कल्प- सूत्र में नारी- चित्रों के वस्त्राभूषण गुजरात के पाण्डुलिपि चित्रों की भाँति एक जैसे ही हैं लेकिन इन चित्रों ने समकालीन वस्त्राभूषणों के उपयोग किये जाने की संभावनाओं को भी अवसर प्रदान किया है, उदाहरणतः माण्डू की पाण्डुलिपियों में महिलाओं को वहाँ के समसामयिक वस्त्राभूषण पहने दर्शाया गया है । कालकाचार्य - कथा पाण्डुलिपि के चित्र कल्प - सूत्र के चित्रों से कहीं अधिक प्रभावशाली हैं और ये चित्र श्वेतांबर जैन चित्रकला के सर्वोत्तम उदाहरणों में से हैं । एक अन्य क्षेत्रीय विशेषता का विकास सन् १४६५ की चित्रित कल्प - सूत्र पाण्डुलिपि में पाया जाता है । यह पाण्डुलिपि हुसैन शाह शर्की 4 के शासनकाल के अंतर्गत जौनपुर में चित्रित हुई । यह निश्चित है कि जौनपुर में जैन संप्रदाय के धनाढ्य लोग रहते थे, तथा यह पाण्डुलिपि वहाँ के स्थानीय चित्रकारों द्वारा चित्रित है । इस पाण्डुलिपि के चित्रों में अंकित कुछ नारी - श्राकृतियों को समकालीन वेषभूषा में दर्शाया गया है। इन नारी- श्राकृतियों को उस प्रकार से प्रोढ़नी प्रोढ़े हुए 1 खण्डालावाला (कार्ल ). 'लीव्स फ्रॉम राजस्थान, मार्ग, 4, सं. 3. 10. 2 खण्डालावाला (कार्ल ) एवं मोतीचंद्र. 'ए कंसीडरेशन ऑफ एन इलेस्ट्रेटेड मैन्युस्क्रिप्ट फॉम मण्डपदुर्ग ( माण्डू ), डेटेड 1439 ए डी', ललित कला 6. पू 8 तथा परवर्ती; रंगीन चित्र और चित्र 5-7 . खण्डालावाला एवं मोतीचंद्र, पूर्वोक्त, 1969, पृ 21. 3 4 खण्डालावाला (काल) एवं मोतीचंद्र. 'एन इलस्ट्रेटेड कल्पसूत्र पेण्टेड एट जौनपुर इन ए. डी. 1465' ललित कल 12. पृ 9-15; रंगीन चित्र एवं चित्र 1-5. Jain Education International 417 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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