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________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [भाग 10 प्रस्तुति है। नीचे पादपीठ के दोनों ओर एक-एक चमरधारिणी और दो-दो पुरुष-प्राकृतियाँ अंकित हैं । मध्य में एक देवता और दो बद्धांजलि परिचारक हैं। खजुराहो संग्रहालय में एक धरणेंद्र-पद्मावती-मूर्ति (१६०९) है पर वह उतनी कलात्मक नहीं है। ज्यामिति के आधार पर अंकित वृक्ष की पंक्तियाँ प्रभावहीन हैं, यही स्थिति उनके पादपीठ और परिकर की है और उनके वस्त्र और आभूषण भी सूक्ष्मता से आलिखित नहीं हैं। खजुराहो संग्रहालय में अंबिका की एक सुंदर मूर्ति (१६०८) है जो गहरे लाल रंग के बलुआ पाषाण से निर्मित है। यह देवी आम्रवृक्ष के नीचे खड़ी है जो फलों से लदा है और जिसके अग्र भाग पर नेमिनाथ विराजमान हैं । उसके तीन हाथ खण्डित हैं और एक की अंगुलि पकड़कर उसका वरिष्ठ पुत्र शुभंकर उसके पास खड़ा है। उसका कनिष्ठ पुत्र प्रियंकर और वाहन सिंह उसके बायें अंकित है। पाँच देवियों का एक-एक समूह दोनों ओर खड़ा अंबिका की परिचर्या में संलग्न है। देवी के अवयव सानुपात हैं, उसे विपुल प्राभूषणों से अलंकृत दिखाया गया है और उसकी केश-सज्जा आकर्षक है। इससे भी बड़ी एक अंबिका-मूर्ति जैन चारदीवारी में स्थित कुंए की दीवाल में लगी है। जिसके अग्रभाग पर तीर्थंकर पद्मासन में विराजमान हैं ऐसे आम्रवृक्ष के नीचे त्रिभंग-मुद्रा में खड़ी देवी के पीछे एक अण्डाकार भामडण्ल है, मस्तक पर सुंदर मुकुट है और उसका शरीर सभी प्रलंकारों से आभूषित है; यद्यपि, उसके चारों हाथ खण्डित हैं। उसका एक पुत्र और सिंह बायें और एक दंपति नीचे प्रस्तुत हैं। पादपीठ पर तीन पंक्तियों का एक अभिलेख है जो अब अस्पष्ट हो गया है पर उसका संवत् (विक्रम) १२१६ पढ़ा जा सकता है। उसी पर दूसरी ओर एक और अभिलेख है जिसके शब्द कदाचित् 'रूपकर-लत' हैं जो मूर्तिकार के नाम का संकेत करते हैं । जैन संग्रह में भी अंबिका की एक महत्त्वपूर्ण मूर्ति (४२) है जो आम्रवृक्ष के नीचे त्रिभंग-मुद्रा में खड़ी है। एक दायें हाथ में वह आम्रखंब धारण किये है (दूसरा दायाँ हाथ खण्डित है) और बायें ऊपर के हाथ में कमल और निचले में पुत्र शुभंकर को लिये है। दूसरा पुत्र प्रियंकर फल लिये उसके पास खड़ा है। अंबिका की कुछ और मूर्तियाँ खजुराहो संग्रहालय (८२० जिसमें पादपीठ पर एक दंपति और चमरधारिणियाँ अंकित हैं और देवी के हाथों में कमल है; १४६७, चित्र ३७८ क; और १६०८ जो महत्त्वपूर्ण नहीं है) और जैन संग्रहालय (६६) में हैं। खजुराहो संग्रहालय में एक सुंदर सरदल (१४६७) है जिसपर अंबिका,चक्रेश्वरी और पदमावती अपने-अपने परिकर के साथ अंकित हैं (चित्र ३७८ क), यह चंदेल-कला का एक अच्छा उदाहरण है । एक व्यंतर शाखा के नीचे ललितासनस्थ नवग्रह प्रस्तुत हैं। जैन संग्रह में एक सिंहासन (५५) है जिसपर चक्रेश्वरी की आकर्षक मूर्ति उत्कीर्ण है। इसके बारहों हाथ और दोनों पैर खण्डित हैं, वह गरुड़ पर पासीन है, ऊपर एक तीर्थंकर के दोनों ओर अन्य तीर्थंकरों की एक-एक खण्डित मूर्ति है जो कदाचित् ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ हैं। इसी संग्रह के एक सरदल पर चक्रेश्वरी अंकित है जिसकी दोनों ओर अंबिका की एक-एक मूर्ति पृथक्-पृथक् खण्डों में उत्कीर्ण है। ऋषभनाथ की अधिकांश मतियों के पादपीठ पर गोमुख और चक्रेश्वरी की लघु आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। खजराहो संग्रहालय की वह मूर्ति (१६०१) बहुत ऊंची होने से उल्लेखनीय है जो किसी शासनदेवी की है 614 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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