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________________ अध्याय 38 ] भारत के संग्रहालय (वह कदाचित चक्रेश्वरी है क्योंकि उसके ऊपर नवग्रहों की प्रस्तुति है)। इसी संग्रहालय में ऋषभनाथ की एक सुंदर मूर्ति (१६५१) है जिसका पादपीठ दो कारणों से महत्त्वपूर्ण है, प्रथम इसलिए कि उसपर सिंहों के स्थान पर एक-एक देवी अंकित है और दूसरे इसलिए कि उस पर गोमुख और चक्रेश्वरी की प्रस्तुति अत्यंत सुंदर बन पड़ी है, यद्यपि वे कुछ-कुछ खण्डित हो गये हैं (चित्र ३७८ ख) । दिक्पाल : खजुराहो के संग्रहालयों में दिक्पालों की मूर्तियाँ भी हैं। यह उल्लेखनीय है कि पार्श्वनाथ-मंदिर में ये यथास्थान प्रस्तुत किये गये हैं पर आदिनाथ-मंदिर में उनका स्थान यक्ष गोमुख ले लेता है। तोरण आदि : खजुराहो में अनेक तोरण प्राप्त हुए हैं जो कदाचित् वेदियों या बड़ी मूर्तियों पर रहे होंगे। जैन संग्रह में ऐसे पाँच तोरण हैं। खजुराहो संग्रहालय का एक सरदल (१७२४) इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि उसपर कुछ तीर्थंकरों के अतिरिक्त भरत और बाहुबली का भी अंकन है। नीरज जैन देवगढ़ के संग्रहालय ब्राह्मण और जैन मंदिरों के कारण विख्यात देवगढ़, जिला ललितपुर, अपनी मूर्ति-संपदा के कारण भी सुपरिचित है जो सातवीं-आठवीं से बारहवीं शताब्दी तक निर्मित हुई। यद्यपि, यह विश्वास भी किया जाता है कि यहाँ निर्माण कार्य गुप्त काल (चित्र ३७८ ख) में प्रारंभ हो गया था और लगभग मुगल काल तक चलता रहा। यहाँ बिखरी मूर्तियों को एकत्र करके उनसे मंदिरों की चारों ओर एक चहारदीवारी बना दी गयी है और कुछ को देवगढ़ में ही निर्मित साह जैन संग्रहालय में रखा गया है। इसके अतिरिक्त एक शासकीय संग्रह भी है। राज्य संग्रहालयों, लखनऊ और समंतभद्र विद्यालय, दिल्ली के संग्रहालयों में भी देवगढ़ की कुछ कलाकृतियाँ हैं । देवगढ़ के जैन शिल्प में तीर्थंकरों, शासनदेवियों, चतुविंशति-पट्टों, विद्याधरों, सर्वतोभद्रिकाओं, सहस्रकूटों, प्राचार्यों, उपाध्यायों, मानस्तंभों, स्तंभों, और श्रावक-श्राविकाओं के विविध रूप तो दृष्टिगत होते ही हैं, विभिन्न मूर्तिशास्त्रीय अंकन भी विद्यमान हैं। इन मूर्तियों में उत्तर-गुप्त-प्रतीहार और चंदेल-शैलियों का प्रभाव देखा जा सकता है। 1 लेखक द्वारा प्रेषित एक अध्याय का संक्षिप्त रूप--संपादक. 2 लेखक का कथन है कि देवगढ़ में एक मौर्य कालीन अभिलेख है और कुछ मूतियों पर (जैसे एक तीर्थकर-मूर्ति, चित्र 379क) गंधार-कला का प्रभाव है.--संपादक. 615 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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