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________________ चित्रांकन एवं काष्ठ-शिल्प [ भाग 7 अलंकरणों में घुमावदार लताओं से निर्मित वृत्ताकारों में हाथी, एकाकी या युगल बत्तख, पौराणिक जलचर आदि तथा अन्य पशु-पक्षी अंकित हैं (रंगीन चित्र : २३ ख, ग और घ) । एक सुंदर पटली में लता के वृत्ताकार घेरे अंकित नहीं हैं लेकिन जलाशय में विकसित कमल-पूष्प की लहरदार लता के घुमाव अंकित हैं जिनमें हाथी, चीता, बंदर, मछली, कछुआ और दौड़ती हुई मुद्रा में पुरुष-प्राकृतियाँ अंकित हैं (चित्र : २६६ क, ख)। यह पटली जैसलमेर की समस्त पटलियों में संभवतः प्रारंभिक है। परंतु इसके लिए भी ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से पहले का समय निर्धारित करना उचित नहीं होगा। अन्य दो पटलियों में से एक पटली, जो इस समय अत्यंत उल्लेखनीय है, जैसलमेर के जैन भण्डार से संबंधित है। इस पटली में हम एक जिराफ तथा गैंडे का चित्र लहरदार लताओं के वृत्ताकारों में, तथा पक्षी, दैत्याकार जलचर और मोहक मुद्रा में अनावृत वक्ष वाली कुमारियों के चित्र पाते हैं (चित्र : २६७ क, ख तथा २६८ क)। इसमें हिरण, सूअर और एक बाँसुरी-वादक का भी चित्र है (चित्र : २६८ ख) । यद्यपि जिराफ भारत का पशु न होकर अफ्रीकी मैदानों का पशु है, परंतु इसमें संदेह नहीं कि इस पटली के चित्रकार ने राजस्थान से होकर जाते हुए जिराफ को देखा है। संभव है, इस जिराफ को कोई विदेशी व्यापारी दल अपने साथ लिये जा रहा हो, क्योंकि यह तो हमें भली-भाँति ज्ञात है कि दुर्लभ पशु-पक्षी राजनयिक उपहारों की सूची में सम्मिलित रहे हैं। इसलिए हो सकता है कि इस जिराफ को किसी भारतीय शासक के लिए उपहार-स्वरूप भेजा गया हो। यह भी संभव है कि यह जिराफ किसी विशाल व्यापारिक जलयान द्वारा जल-मार्ग से गुजरात के किसी बंदरगाह पर आया हो। जो भी हो, पटली के अलंकरण में सम्मिलित इस प्रकार की विविधता इस तथ्य की ओर संकेत देती है कि प्रारंभ में चित्रकारों को कलात्मक अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता प्राप्त भी, जो आगे चलकर कला के अधिकाधिक औपचारिक हो जाने के कारण नहीं रही। एक सींगवाला गैंडा उस समय भारत में उपलब्ध था। इस प्रकार के गैंडे आज तराई-क्षेत्र तक ही सीमित रह गये हैं जबकि उस समय देश के अन्य भागों में भी पाये जाते थे। इस पटली के चित्रकार ने गैंडे को भी कहीं संभवतः किसी अजायबघर या किसी स्थान पर बंद देखा होगा। दूसरी पटली में, जो इसी भण्डार की है, हाथियों, ऊपर की ओर उठी हुई पूछ-युक्त पक्षियों तथा खूखार शेरों के चित्र अंकित हैं। ये सभी पशु-पक्षी वर्गाकार घेरों के मध्य बने वृत्तों में अंकित हैं (चित्र २६६ क तथा ख)। ये पालंकारिक चित्र हमारा ध्यान अजंता की छतों के उस समृद्ध चित्रण की ओर ले जाते हैं जो पुष्पों, पशु-पक्षियों और लता-वल्लरियों की अभिकल्पनाओं से अति संपन्न हैं। इस पटलियों के प्रालंकरण-चित्रण में हम पुनः एक बार इस बात के साक्ष्य पाते हैं कि गुजरात और राजस्थान में, जहाँ ये पटलियाँ चित्रित हुई, अजंता के आलंकारिक प्राशयों के चित्रण की परंपरा प्रचलित थी। इस पटली पर 'निषीह-भाष्य-पूजा श्री विजयसिंहाचार्जानम' लिखा | नवाब (साराभाई). मोल्डेस्ट राजस्थानी पेण्टिग्स फ्रॉम जैन भण्डार्स. 1959. अहमदाबाद. चित्र 3 क से 8 क. 2 पूर्वोक्त, चित्र डब्ल्यू और वाई. 3 पूर्वोक्त, चित्र । और 2. 406 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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