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अध्याय 38 ]
भारत के संग्रहालय
बाहुबली (१०५; माप १७४५१ सें. मी०; कांस्य ; श्रवणबेलगोला) : एक बड़े पादपीठ से स्पष्टतः पृथक् एक गोल आधार पर बाहुबली को कायोत्सर्ग-मुद्रा में दिखाया गया है। बाहुबली के कंधे कूछ चौड़े हैं जबकि उसका धड़ तथा हाथ-पैर स्वाभाविक रूप के प्रतिरूपित हैं । उसके अण्डाकार मुख पर भरे हुए गाल, उभरी हुई नाक, सुस्पष्ट होंठ तथा कुछ-कुछ उठी हुई भौंहें अंकित हैं। कान लंबे
और छिद्र-युक्त हैं। बाल पीछे की ओर कढ़े हुए हैं जो पीछे की ओर लटों में कुण्डलित होकर उनके कंधों पर लहरा रहे हैं। एक कुण्डलित लता जो काफी उदभत रूप से अंकित है उनके हाथ और पैरों के चारों ओर लिपटी हई है। यह प्रतिमा आठवीं-नौवीं शताब्दी की है (चित्र ३५२) ।
यक्षी (६५.२; ऊँचाई २२.५ सें० मी०; कांस्य; कर्नाटक): इस प्रतिमा में एक अनावृत वक्षस्थल वाली नारी-आकृति को अंकित किया गया है जो मात्र अधोवस्त्र धारण किये है तथा अतिभंग-मद्रा में एक वर्गाकार पादपीठ पर खड़ी है। वह अपने दायें हाथ में चमर धारण किये है तथा बायाँ हाथ एक स्तंभ पर टिका हुआ है। यह स्तंभ दस कलश (?) स्तंभ प्रतीत होता है। उसकी मुखाकृति आद्य रूप में प्रतिरूपित है जिसमें उसकी नाक चपटी, होंठ और भौंहें मोटी हैं। उसका जूड़ा विशद है । उसके द्वारा पहने अधोवस्त्र की प्रतीति बायीं जंघा के ऊपर ऊँचाई के साथ उद्धृत वस्त्र के एक छोर के अंकन तथा कटि के चारों ओर डोरीनुमा मेखला से होती है। वह भुजबंध और पायल पहने है (चित्र ३५३ क)।
अचिह्नित तीर्थंकर (६७.७; ऊँचाई १५ सें० मी०; पीतल; पश्चिम-भारतीय शैली; अकोटा शैली): इस प्रतिमा में तीर्थंकर सिंहासन पर प्राधृत गद्दी पर ध्यान-मुद्रा में बैठे हुए हैं । यद्यपि मुखाकृति कुछ-कुछ खण्डित हो गयी है तथापि वह अण्डाकार है, कर्णान लंबे और छिद्र-युक्त हैं, सिर पर उभरा हा उष्णीष है। गर्दन कम्बु-ग्रीव है। उनके पार्श्व में यक्ष और यक्षी हैं। यक्ष अपने हाथ में नकुल और बीजपूरक लिये है तथा यक्षी आम्र-वृक्ष की शाखा पकड़े है। तीर्थंकर का वृत्ताकार भामण्डल जो मणिभाकार प्रकार का है स्वतिकाकार स्तंभ-युक्त दो सादे स्तंभों पर आधारित है। पादपीठ पर दोनों ओर एक-एक दानदाता सहित धर्म-चक्र प्रमुखता के साथ अंकित हैं। तीर्थंकर के वक्ष पर श्रीवत्स-चिह्न तथा पादपीठ पर नवग्रहों के अंकन का अभाव है। इस प्रतिमा की तिथि संवत् ६६४ (सन् ८८७) है।
ऋषभनाथ (६७.६; माप २३.३ सें. मी० पीतल ; पश्चिम-भारतीय शैली, अकोटा शैली) तीर्थंकर आवरण-सहित सिंहासन पर ध्यान-मुद्रा में बैठे हैं । मुखाकृति अांशिक रूप से खण्डित हो चुकी है, आँखें चाँदी निर्मित हैं, कान लंबे और छिद्र युक्त है तथा उष्णीष पर्याप्त उभारदार है । वक्ष पर श्रीवत्स-चिह्न अंकित है। यक्ष-यक्षी पूर्वोक्त प्रतिमा की भाँति ही अंकित हैं। परिकर विशेष रूप से उल्लेखनीय है । तीर्थंकर के पार्श्व में दोनों ओर चमरधारी और प्रभा-मण्डल के पार्श्व में गणधर हैं। यह प्रतिमा दक्षिणापथ-कर्नाटक शैली से उद्भूत है। इसके लिए नौवीं शताब्दी का उत्तरार्ध अथवा दसवीं शताब्दी का पूर्वाध काल निर्धारित किया जा सकता है (चित्र ३५३ ख)।
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