SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 पार्श्वनाथ की त्रि-तीथिका (६७.१२; ऊँचाई १५.५ सें० मी०; पीतल; पश्चिम-भारतीय शैली, संभवतः वसंतगढ़) : इस प्रतिमा में तीर्थंकर पद्म-पुष्पों के पट्ट के एक विश्व-पद्म पर ध्यानमद्रा में बैठे हए दर्शाये गये हैं। तीर्थंकर का मख-मण्डल वर्गाकार है, उनके लंबे कान कंधे को छ रहे हैं तथा उष्णीष प्रमुख रूप से प्रदर्शित है। उनके पार्श्व में दायीं ओर ऋषभनाथ तथा बायीं ओर महावीर कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हैं जिनके शीर्ष के पीछे अण्डाकार भामण्डल है। उनके परिकर की अन्य आकृतियों में यक्ष धरणेंद्र तथा यक्षी पदमावती हैं। पादपीठ पर चक्र अंकित है जिसके दोनों ओर हिरण हैं। यह प्रतिमा लगभग १०५० की है (चित्र ३५४ क)। चैत्य-गृह (५७.१४; माप २०x१२४३३ सें० मी० पीतल; गुजरात) यह प्रतिमा एक आयताकार मंदिर के रूप में है। इस मंदिर में आधार-भित्तियाँ तथा कलश-मण्डित शिखर है। आधार-भाग के केंद्रवर्ती कोष्ठ में एक यक्षी प्रतिष्ठित है तथा दोनों किनारों पर दानदाताओं की प्राकृतियाँ अंकित हैं। आधार पर नव-ग्रह भी अंकित हैं। प्राकार में दो द्वार हैं। गुंबद-भाग के मध्यवर्ती कोष्ठ में सरस्वती की प्रतिमा प्रतिष्ठित है जिसके पार्श्व में दोनों ओर एक-एक गज अंकित है। इस प्रकार के छोटे-छोटे मंदिर घर के अंदर परिवार के कुल-देवों की उपासना के लिए सामान्य रूप से पाये जाते रहे हैं। इस प्रतिमा का काल लगभग सत्रहवीं शताब्दी है (चित्र ३५४ ख)। मोतीचंद्र सदाशिव गोरक्षकर राजस्थान के संग्रहालय जैन ट्रस्ट, सिरोही राजस्थान में जैन कांस्य-प्रतिमानों का सबसे प्रारंभिक काल का भण्डार सिरोही जिले के पिण्डवाड़ के समीप वसंतगढ़ में प्राप्त हुआ था। इस भण्डार की प्रतिमाएँ इस समय सिरोही के जैन ट्रस्ट के अधीन हैं। इस भण्डार से कायोत्सर्ग तीर्थंकरों की दो विशाल स्वतंत्र प्रतिमाएं प्राप्त हुई थीं जिनमें से एक प्रतिमा आदिनाथ की है। आदिनाथ की प्रतिमा में उनके केश-गुच्छों को कंधों पर लहराते हुए दर्शाया गया है। यह प्रतिमा लगभग १.०६ मीटर ऊँची है। दूसरी प्रतिमा के पादपीठ पर विक्रम संवत् ७४४ का अभिलेख अंकित है जिसके अनुसार इस प्रतिमा का निर्माण शिवनाग द्वारा सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् दर्शन को प्राप्त करने के लिए कराया गया था। इस भण्डार से कुछ अन्य कांस्य प्रतिमाएँ भी उपलब्ध हुई हैं जिनमें सरस्वती की एक प्रतिमा उल्लेखनीय है। सरस्वती अपने दायें हाथ में कमलनाल और बायें हाथ में पाण्डुलिपि धारण किये हुए हैं। उनका मुकुट विशद और अलंकृत है जिसके शीर्ष पर सूर्य-चक्र और दोनों किनारों पर मकर-मुख बिन्दुओं से युक्त परिधि के आकार का उनका भामण्डल उत्तर और पश्चिम भारत के भामण्डलों के अनुरूप है। इसकी कुछ कांस्य प्रतिमाएँ आठवीं-नौवीं शताब्दी की भी हैं। 588 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy