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अध्याय 38 ]
भारत के संग्रहालय तीर्थंकर-प्रतिमा के परिकर का एक अंग है। इसमें चमरधारी त्रिभंग-मुद्रा में खड़ा हुआ है। उसके दायें हाथ में चमर है और बायाँ हाथ कटि-मुद्रा में है। प्रतिमा समृद्ध रूप से अलंकृत है जिसमें वह अलंकृत किरीट-मुकुट, मौक्तिक-दाम, हार, कुण्डल, कंकण, भुजबंध तथा पैरों में पायल पहने हुए है। वह धोती पहने है जो कमर में रस्सी के कमरबंध से कसी हुई है तथा जिसमें मोतियों की लड़ियां भी गुंथी हुई हैं। उसकी जांघों के ऊपर पर्यस्तिका है। यह प्रतिमा बारहवीं शताब्दी की है (चित्र ३५० क)।
दान दाता (?) (१२७; माप ३८४५५.५ सें० मी०; संगमरमर; राजस्थान) : यह एक दाढ़ी वाले पुरुष की आकृति है जो एक चौकी पर ललितासन-मुद्रा में बैठा है जिसमें उसका दायाँ पैर नीचे लटक रहा है। उसके बाल पीछे की ओर कढ़े हुए है तथा बायें कंधे के पास एक जूड़े के रूप में बँधे हुए हैं। उसका भामण्डल एक विशद पद्म-पुष्प के रूप में अंकित है । वह धोती बाँधे और कंधों पर चादर ओढ़े है जिसके छोर नीचे की ओर लटक रहे हैं। वह अपने दोनों हाथों में एक विशेष शैली में अंकित कमलों को धारण किये है। इस मूर्ति-पट्ट के दो स्तंभ उन दो लघु देवकोष्ठों को आधार प्रदान किये हुए हैं जिनमें यक्ष और यक्षी को बैठे हुए दिखाया गया है। इनके ऊपर त्रिपर्ण तोरण है जिसके शीर्ष पर देवालय है जिसमें तीर्थंकर-प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इसके पादपीठ पर संवत् १२४२ (सन् ११८५) का तिथि-युक्त अभिलेख है जिसके अनुसार इस प्रतिमा को किसी शक्तिकुमार ने निर्मित कराया था (पूर्वोक्त चित्र २००)।
पार्श्वनाथ (३२; ऊँचाई २१.५ सें० मी०; कांस्य) : इस कायोत्सर्ग दिगंबर तीर्थंकर की प्रतिमा की दायीं भुजा का अग्रभाग खण्डित हो चुका है। तीर्थंकर के सिर के पीछे पाँच फणी नागछत्र तथा पैरों के मध्य उनका लांछन कुण्डलीबद्ध नाग प्रदर्शित है। प्रतिमा की विशेषताएँ अत्यंत रूढ़ हैं । उनके चौड़े कंधे, धड़-भाग का प्रतिरूपण, लंबी टाँगें आदि कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जिनकी तुलना पटना संग्रहालय में संरक्षित चौसा के भूमिगत मूर्ति-भण्डार से प्राप्त कुछ प्रारंभिक कांस्य प्रतिमानों से की जा सकती है। पैरों के नीचे के टूटे हुए जोड़ वाले भाग से प्रतीत होता है कि यह प्रतिमा अवश्य ही पादपीठ पर स्थित रही होगी जो अब नष्ट हो चुका है। यह प्रतिमा लगभग दुसरी शताब्दी की है (प्रथम भाग में चित्र ३७) ।
तीर्थकर (१२२; ऊँचाई २२ सें.मी०; कांस्य; वाला, गुजरात) : इस प्रतिमा में तीर्थकर को अधोवस्त्र पहने हुए एक वर्गाकार आधार पर स्थित वृत्ताकार मणिभांकित पादपीठ पर कायोत्सर्ग-मुद्रा
1 इस प्रतिमा की तिथि एवं क्षेत्र के विषय में उमाकांत प्रेमानंद शाह के अभिमत के लिए द्रष्टव्य प्रथम भाग में . प.87-88. प्रस्तुत लेख के लेखकों का इस विषय में अपना अभिमत है कि चौसा के भण्डार से प्राप्त कुषाण
कालीन जैन कांस्य प्रतिमाओं द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार यह नितांत अनिवार्य है कि इस प्रतिमा की तिथि का पुननिर्धारण किया जाये. यहाँ विवेचित कांस्य प्रतिमा के चौड़े कंधे और लंबे पैर ऐसी विशेषताएं हैं, जो चौसा की कांस्य प्रतिमाओं से घनिष्ठ समानता रखते हैं.
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