SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय 38 ] भारत के संग्रहालय दो प्रतिमाओं (पूर्वोक्त पृ० २५६ तथा ५७२) का स्मरण कराती हैं। यह परिकर शैलीगत आधार पर बारहवीं शताब्दी की चाहमान-कला का एक सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है (चित्र ३४५) । पार्श्वनाथ का पंचविंशति-पट्ट (६३.७३): इसमें पार्श्वनाथ को कायोत्सर्ग मद्रा में दिखाया गया है । तीर्थंकर के पार्श्व में दोनों ओर दो अन्य तीर्थकर खड़े हुए हैं । इस पट्ट का तोरण पश्चिम-भारत के उत्तर मध्यकालीन मंदिरों के द्वारों के समान है। इस पट्ट के पीछे संवत् १५०० (सन् १४४३) का एक अभिलेख भी है (चित्र ३४६) । ब्रजेन्द्र नाथ शर्मा शीतला प्रसाद तिवारी प्रिंस प्रॉफ वेल्स संग्रहालय, बंबई जैन त्रि-तीथिका (११३; ऊंचाई ८६ सें० मी०; पाषाण, अंकाई-तंकाई, जिला नासिक) : इस प्रतिमा में एक तिहरे छत्र के नीचे भामण्डल-युक्त तीर्थकर अपने पार्श्व के दोनों ओर एक-एक तीर्थकर के साथ कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हैं। तीनों ही तीर्थंकरों के बाल कंधों पर बिखरे हुए हैं। मूलनायक के पार्श्व में दोनों ओर चमरधारी सेवक हैं और उनके पैरों के समीप प्रतिमा का दान-दाता दंपति अंकित है। परिकर के शीर्ष-भाग में प्रातिहार्य और शीर्ष के ऊपरी सिरे के साथ लगी हुई संगीतज्ञों की एक पंक्ति है। तीर्थंकरों के भामण्डल के पीछे अंकित पत्तों का संयोजन संभवतः उनके बोधि-वृक्षों का सूचक है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कंधों पर लहराते हुए बालों का अंकन प्रायः ऋषभनाथ की प्रतिमाओं में पाया जाता है परंतु अंकाई-प्रतिमाओं में तीर्थंकरों के बालों का इस प्रकार का अंकन उनकी अपनी निजी विशेषता प्रतीत होती है, यहाँ तक कि उन्होंने पार्श्वनाथ के बालों का भी अंकन इसी प्रकार से किया है। यह प्रतिमा लगभग नौवीं-दसवीं शताब्दी की है (चित्र ३४७ क)। ___ जैन पंच-तीथिका (११४; ऊँचाई ८८.५ सें० मी०; पाषाण, अंकाई-तंकाई) : तीर्थंकर कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हैं जिनके पार्श्व में दोनों ओर ऊपरी भाग में बने देव-कोष्ठों में तीर्थंकरों को बैठे हुए दिखाया गया है और इनके नीचे कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हुए तीर्थंकरों को। मूल-नायक के पार्श्व में दोनों ओर चमरधारी सेवक हैं। यह पट स्तंभों से अत्यंत विशद रूप से अलंकृत है। ये स्तंभ अन्य तीर्थकरों और देव-कोष्ठों को आधार प्रदान किये हुए हैं। दोनों ओर गज-व्याल का प्रतीक अंकित है। पादपीठ पर अभिलेख अंकित है (चित्र ३४७ ख)। यक्ष धरणेंद्र (११६; माप : ४३.५४७६ सें. मी०; भूरा पत्थर, कर्नाटक क्षेत्र) : चतुर्भजी यक्ष धरणेंद्र एक प्रासन पर ललित मुद्रा में बैठा है जिसमें उसका दायाँ पैर नीचे लटका हुअा है। यक्ष एक विशद मुकुट और भरपूर आभूषण पहने हुए है। वह अपनी चार भुजाओं में से 583 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy