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संग्रहालयों में कलाकृतियाँ
[ भाग 10
पहने है । उसके वाहन सिंह को उसकी बायीं ओर दर्शाया गया है । इस प्रतिमा का आकर्षक प्रतिरूपण दर्शाता है कि यह प्रतिमा दसवीं शताब्दी की पाल कला की कृति है ( चित्र ३४३ ख ) ।
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पद्मावती ( ४८.४ / २७३ ) : इस प्रतिमा में सम्मुख को ओर आगे निकले एक आयताकार पादपीठ पर स्थित पद्म-पुष्प के आसन पर देवी पद्मावती को पालथी मारे बैठे हुए दर्शाया गया है । देवी के ऊपर तीन फण वाला वैसा ही नाग छत्र है जैसाकि पार्श्वनाथ के शीर्ष पर दर्शाया जाता है । यह देवी चतुर्भुजी है जिसकी दायीं ओर की ऊपरी भुजा में एक फल है तथा उसी ओर की निचली भुजा वरद मुद्रा में है । बायीं ओर की ऊपरी भुजा में पद्म-पुष्प तथा निचली 'भुजा में जल-कलश उसके कंधों पर उत्तरीय - जैसा वस्त्र पड़ा है तथा वह सामान्य आभूषण पहने है । उसका लांछन कुक्कुट ( जो खण्डित है ) उसकी बायीं ओर अंकित है। प्रतिमा के दोनों श्रोर दो स्तंभ हैं जिनके किनारे मणिभ युक्त हैं। स्तंभ त्रिपर्ण-तोरण को आधार प्रदान किये हुए हैं। तोरण के शीर्ष पर कलश है । यह प्रतिमा पश्चिम भारत की शैली में निर्मित है जो लगभग सत्रहवीं शताब्दी की प्रतीत होती 1
पद्मावती ( ४७ १०९ / १२४ ) : वर्गाकार पादपीठ पर आधृत वृत्ताकार आसन पर देवी पद्मावती ललितासन - मुद्रा में बैठी हुई है । यह चतुर्भुजी प्रतिमा है। देवी की दायीं ओर की पिछली भुजा में अंकुश है और सामने की भुजा वरद - मुद्रा में है । बायीं ओर की पिछली भुजा ( जो खण्डित है ) में पाश है तथा आगे की भुजा में दाडिम- जैसा फल है । पाँच फण वाला नाग छत्र देवी को छाया प्रदान कर रहा है। देवी के शीर्ष के ऊपरी भाग में एक पद्मासनस्थ तीर्थंकर की प्रतिमा है । इस प्रतिमा के लिए लगभग अठारहवीं शताब्दी का समय निर्धारित किया जा सकता है, लेकिन यह किस क्षेत्र से प्राप्त हुई है, यह ज्ञात है ।
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एक परिकर (६७ १०३ ) : यह एक तीर्थंकर प्रतिमा के पृष्ठ भाग का प्रलंकृत ढाँचा है जो मुख्य तीर्थंकर की प्रतिमा से पृथक् हो चुका है । यह किस तीर्थंकर प्रतिमा का परिकर है यह ज्ञात नहीं है । इसके मध्यवर्ती भाग प्रकाश की किरणों से युक्त कमल - पत्र तथा अन्य विशेष डिज़ाइनों से युक्त एक विशद भामण्डल है भामण्डल के पार्श्व में दोनों ओर मकर-मुख हैं जिनसे कमलों का एक सुंदर पट निस्सृत हो रहा है । इनके ऊपर विद्याधरों का एक युग्म, वृषभ की मुखाकृति वाली उड़ती हुई प्राकृतियाँ, हाथी पर सवार भेंट के लिए माला-वाहक प्राकृतियाँ अंकित हैं जो उल्लेखनीय ढंग से तीर्थंकर की ओर अग्रसारित होती हुई दर्शायी गयी हैं। केंद्रवर्ती छत्र के पार्श्व तथा ऊपरी भाग में उड़ते हुए गंधर्व आदि अंकित हैं। इन गंधर्वों में से दो गंधर्व रणभेरी बजा रहे हैं तथा उनके ऊपर केंद्रवर्ती भाग में एक गंधर्व शंख बजा रहा है । ये गंधर्व इन वाद्य यंत्रों को बजाकर तीर्थंकर की केवलज्ञान प्राप्ति की घोषणा कर रहे हैं । इस परिकर की प्राकृतियों का प्रतिरूपण, उनके द्वारा पहने गये विशेष प्रकार के करण्ड-मुकुट तथा सुस्पष्ट मुखाकृतियाँ और परिकर के निचले भाग में कित कमलों की डिज़ाइनें हमें पल्लू (बीकानेर) से प्राप्त समसामयिक तीर्थंकर और सरस्वती की
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