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________________ अध्याय 38 ] भारत के संग्रहालय भाग कलश अथवा स्तूपी से मण्डित है । यह प्रतिमा अंदर से खोखली है और कई स्थानों पर खण्डित हो चुकी है । चक्रेश्वरी (६७.१५२ ) : इस प्रतिमा में एक आयताकार पादपीठ पर स्थित पद्म-पुष्प पर देवी चक्रेश्वरी को ललितासन में दर्शाया गया है । यह देवी अष्टभुजी है जो अपनी छह भुजानों में चक्र धारण किये है । उसका आगे का दायाँ हाथ वरद मुद्रा में है और बायें हाथ में वह बीजपूरक धारण किये है। वह एक ऊंचा मुकुट, कानों में वृत्ताकार कुण्डल और गले में माला पहने है । प्रतिमा के पृष्ठ-भाग के चौखटे में तीर्थंकर आदिनाथ अंकित हैं जिनके शीर्ष पर तिहरे छत्र हैं। देवी का वाहन गरुड सम्मुख भाग में प्रदर्शित है। देवी की मुखाकृति घिस चुकी है । यह प्रतिमा दसवीं शताब्दी की प्रतीहार कला की एक उत्तम कृति है (चित्र ३४३ क ) | द्विभुजी अंबिका ( ६८.१६० ) : इस प्रतिमा में अंबिका को उसके वाहन सिंह के ऊपर श्रारूढ़ दर्शाया गया | अंबिका के दायें हाथ में आम्रवृक्ष -शाखा ( जिसका शीर्ष - भाग खण्डित हो चुका है ) है तथा वह अपने बायें हाथ से अपने एक शिशु को पकड़े हुए है । उसका दूसरा शिशु उसके ठीक बायीं ओर खड़ा हुआ है । प्रतिमा के पृष्ठ भाग का चौखटा देवी के पार्श्व में अंकित गज-व्यालों पर आधारित देवी का भामण्डल दसों दिशाओं में ज्वालाएँ विकीर्ण करने वाला है । प्रतिमा के शीर्ष भाग पर अर्ध - पद्मासन मुद्रा में तीर्थंकर नेमिनाथ की एक लघु आकृति अंकित है । यह प्रतिमा पश्चिम भारत में नवीं शताब्दी में निर्मित हुई ( चित्र ३४४ ) । । चतुर्भुजी अंबिका (४८.४ / ११ ) : इस प्रतिमा में अंबिका को एक आयताकार पादपीठ पर स्थित सिंह पर प्रारूढ़ ललितासन - मुद्रा में दर्शाया गया है । उसके ऊपरी हाथों में आम्र-गुच्छ हैं, दायीं प्रोर के सम्मुख हाथ में वह एक फल लिये हुए है तथा बायीं ओर के सम्मुख हाथ से वह शिशु को पकड़े हुए है जो उसकी गोद में बैठा है। दूसरा शिशु उसकी दायीं ओर खड़ा है । वह करण्ड-मुकुट, कुण्डल, गलहार, भुजबंध, पायल तथा अधोवस्त्र धारण किये है । उसका अर्ध-वृत्ताकार मण्डल कमल दलवत् है । पृष्ठ-भाग का आधार पूर्ण-घट से मण्डित है । अंबिका के शीर्ष के ऊपरी भाग में एक आयताकार देव कुलिका में नेमिनाथ को बैठे दर्शाया गया है । इस प्रतिमा में अंबिका का एक विशेष प्रकार का मुकुट, चौड़ा चेहरा, सुस्पष्ट चिबुक तथा देहयष्टि का प्रतिरूपण संकेत देता है कि यह प्रतिमा परमार कलाकार की कृति है । इस प्रतिमा पर संवत् १२०३ का एक अभिलेख भी अंकित है । मुलम्मा युक्त अंबिका ( ४६.१२ / ३ ) : इस प्रतिमा में एक अलंकृत आयताकार पादपीठ पर स्थित एवं पद्म-पुष्प श्रासन पर आमों से लदे हुए वृक्ष के नीचे अंबिका को आकर्षक मुद्रा में खड़े हुए दर्शाया गया है । अंबिका दायें हाथ में श्राम्र -गुच्छ पकड़े हुए है और बायें हाथ से गोदी में चढ़े हुए शिशु को सहारा दे रही है । दूसरा नग्न शिशु ( जिसके हाथ खण्डित हो चुके हैं ) उसकी बायीं ओर खड़ा हुआ है । वह कानों में वृत्ताकार कुण्डल, गलहार, बहुत सी चूड़ियाँ तथा साड़ी और पायल Jain Education International 581 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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