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________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 पीछे विकीर्ण प्रकाश-किरण-युक्त भामण्डल है तथा तीर्थंकर के पार्श्व में दो पद्मासन तथा दो खड़गासन तीर्थंकर अंकित हैं। सिंहासन की एक ओर तीर्थंकर का यक्ष विजय और दूसरी ओर यक्षी भृकुटी अंकित है। पादपीठ के सम्मुख भाग पर तीर्थंकर का लांछन अर्धचंद्र अंकित है । इस काल की अन्य प्रतिमाओं की भाँति इस प्रतिमा के पादपीठ के सम्मुख-भाग पर नव-ग्रह तथा उपासक भी अंकित हैं । समची प्रतिमा के चारों ओर एक अति-अलंकृत मकर-तोरण भी है। प्रतिमा के पृष्ठ-भाग पर संवत् १६१२ की तिथि का एक अभिलेख अंकित है। शीतलनाथ (४८.४/४६) : सिंहासन पर पद्मासन-मुद्रा में बैठे तीर्थंकर शीतलनाथ की इस प्रतिमा की आंखें, श्री-वत्स चिह्न तथा प्रासन का सम्मुख-भाग चाँदी और ताँबे की पच्चीकारी से निर्मित हैं। तीर्थंकर के शीर्ष के पीछे विकीर्ण प्रकाश-किरणों से युक्त भामण्डल है। तीर्थंकर का लांछन श्री-वत्स दो सिंहों के मध्य में अंकित है। सिंहासन की एक ओर तीर्थंकर का यक्ष ब्रह्मा तथा दूसरी ओर यक्षी अशोका अंकित है। पादपीठ पर नव-ग्रह चक्र और उसके दोनों ओर हिरण तथा दोनों किनारों पर एक-एक उपासक अंकित हैं । समूची प्रतिमा मकर-तोरण से प्रावृत है जिसके शीर्ष पर पूर्ण-घट स्थित है। तोरण के किनारे मणिभ अलंकरण से आबद्ध हैं तथा तोरण से फंदने निकले हए हैं। प्रतिमा के पृष्ठ पर संवत् १५४२ की तिथि का एक अभिलेख भी है। विमलनाथ (४८.४/२५) : यह तीर्थंकर विमलनाथ की पद्मासन-मुद्रा की प्रतिमा है जिसमें उनके ऊपर छाया करते हुए चार छत्र तथा उनकी बगल में गज-युग्म और गंधर्व आदि अंकित हैं। तीर्थकर की आँखें, श्री-वत्स चिह्न तथा आसन का सम्मुख भाग आदि चाँदी की पच्चकारी से निर्मित हैं। विमलनाथ के पार्श्व में दोनों ओर दो-दो तीर्थंकर कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हुए हैं। पादपीठ के सम्मख भाग में तीर्थकर का लांछन बराह, नवग्रह तथा चक्र और उसकी दोनों ओर हिरण अंकित हैं। इसके पीछे उत्कीर्ण अभिलेख से ज्ञात होता है कि यह प्रतिमा संवत् १५०२ में प्रतिष्ठित की गयी थी। अनंतनाथ (४८.४/५२) : इस प्रतिमा में तीर्थंकर अनंतनाथ तिहरे छत्र के नीचे सिंहासन पर पदमासन-मद्रा में अवस्थित हैं। सिंहासन के पार्श्व में दोनों ओर हाथी अंकित हैं। तीर्थंकर की अाँखें, श्री-वत्स चिह्न आदि चाँदी और ताँबे की पच्चीकारी से निर्मित हैं। उनके सिर के पीछे प्रकाशकिरण-यूक्त भामण्डल है। सिंहासन के पार्श्व में एक ओर तीर्थंकर का यक्ष पाताल तथा दूसरी ओर यक्षी अनंतमती बैठी हुई है। पादपीठ के सम्मुख-भाग पर नव-ग्रह आदि अंकित हैं । प्रतिमा की चारों मोर एक मकर-तोरण है। पीछे उत्कीर्ण अभिलेख में इस प्रतिमा के नाम तथा इसके दानदाता और इसकी तिथि संवत् १५०७ का उल्लेख है। धर्मनाथ (४८.४/५०) : ध्यान-मुद्रा में सिंहासनासीन तीर्थंकर की आँखें, श्री-वत्स चिह्न प्रादि चाँदी और ताँबे की पच्चीकारी से निर्मित हैं। भामण्डल प्रकाश-किरणों से युक्त है। उनके पाश्वों में दो पद्मासन और दो खड्गासन-मुद्रा में तीर्थंकर दिखाये गये हैं। पच्चीकारी के फलक पर 578 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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