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________________ प्रध्याय 38 ] भारत के संग्रहालय विकीर्ण हो रही हैं। उनके ऊपर तिहरे छत्र हैं जिनपर गंधर्व तथा दोनों ओर हाथी अंकित हैं । उनके पार्श्व में दो बैठे हुए तथा दो खड़े हुए तीर्थंकर और गंधर्व हैं। सिंहासन को दो हाथी आधार प्रदान किये हुए हैं। एक पच्चीकारी के फलक पर अभिनंदननाथ का लांछन बंदर अंकित है। सिंहासन के पार्श्व में एक ओर तीर्थंकर का यक्ष ईश्वर है तथा दूसरी ओर यक्षी काली है। पाद-पीठ के सम्मुखभाग पर नव-ग्रह, एक चक्र और उसके दोनों ओर हिरण तथा कोनों पर हाथ जोड़े उपासक खड़े हैं। एक बैठी हुई नारी-आकृति एक कोष्ठ में आबद्ध है जिसकी बगल में चार तोरण हैं। समूची प्रतिमा मकर-तोरण से परिवृत है जिसे खड़े चमरधारियों की दो आकृतियाँ आधार प्रदान किए हैं । तोरण के शीर्ष पर पूर्ण-घट अंकित है । तोरण से फुदने लटक रहे हैं। उसका किनारा मणिभ शृंखलाओं से आबद्ध है तथा पत्र-पुष्पों की डिजाइन से अलंकृत है। प्रतिमा के पृष्ठ-भाग पर संवत् १६१० का एक अभिलेख उत्कीर्ण है । सुमतिनाथ (४८.४/४४) : तीर्थकर सुमतिनाथ की इस पद्मासन प्रतिमा में उनकी आँखें, श्री-वत्स-चिह्न तथा चुचुक एवं आसन का सम्मुख-भाग चाँदी और तांबे की पच्चीकारी से बने हैं। उनके सिर के पीछे प्रकाश-किरण से युक्त भामण्डल है। तीर्थंकर के पार्श्व में दो पद्मासन तथा दो कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर हैं । सिंहासन की एक ओर उनका यक्ष तुम्बुरु और दूसरी ओर यक्षी महाकाली बैठी है। दो सिंहों के मध्य में उनका लांछन चक्रवाक अंकित है। पाद-पीठ के सम्मुख भाग पर चार तोरण, नवग्रह, चक्र और उसके दोनों ओर दो हिरण, तथा कोनों पर बैठे हए उपासक अंकित हैं । प्रतिमा के चारों ओर मकर-तोरण हैं जिसे दोनों ओर से दो खड़ी हुई आकृतियाँ आधार प्रदान किये हैं। प्रतिमा के पीछे संवत् १५३२ की तिथि का एक अभिलेख अंकित है। पद्मप्रभ (४८.४/१८) : इस प्रतिमा में तीर्थंकर पद्मप्रभ को पादपीठ पर आधृत एक सिंहासन पर बैठे हए दर्शाया गया है। पादपीठ के सम्मुख भाग पर एक त्रिभजाकार डिजाइन है। तीर्थकर की आँखें और श्री-वत्स-चिह्न चाँदी की पच्चीकारी से निर्मित हैं। भामण्डल विकीर्ण प्रकाशकिरणों से युक्त है। तीर्थंकर के ऊपर तिहरा छत्र है जिसके पार्श्व में हाथी, गंधर्व आदि अंकित हैं। पादपीठ कर तीर्थंकर का यक्ष कुसुम और यक्षी श्यामा अंकित हैं तथा तीर्थंकर का लांछन (लाल) कमल दो सिंहों के बीच में अंकित है। प्रतिमा के पृष्ठ पर संवत् १४२३ का अभिलेख उत्कीर्ण है। सुपार्श्वनाथ (६०.८३६) : इस प्रतिमा में सुपार्श्वनाथ को पादपीठ पर स्थित आसन पर ध्यान-मुद्रा में बैठा दिखाया गया है। तीर्थंकर के सिर पर नौ-फणी नाग-छत्र है। प्रतिमा के अंगोपांग घिस चुके है। पादपीठ पर भाव संवत्सर १२५६ का अभिलेख उत्कीर्ण है। चंद्रप्रभ (४८.४/५५) : पादपीठ पर स्थित सिंहासन पर तीर्थंकर को ध्यान-मुद्रा में बैठे हए दर्शाया गया है। प्रतिमा के सम्मुख-भाग में चार तोरण हैं । अधिकांश प्राकृतियाँ घिस चुकी हैं। श्री-वत्स-चिह्न और प्रासन का सम्मुख-भाग चाँदी की पच्चीकारी से निर्मित है। सिर के 577 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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