________________
संग्रहालयों में कलाकृतियाँ
[भाग 10 हैं। कुछ प्रतिमाओं में आँखें तथा श्रीवत्स-चिह्न और आसन का सम्मुख-भाग चाँदी से उरेकित है। किसी-किसी प्रतिमा पर तिथि अंकित है और उसके दाता का नाम भी अंकित है।
ऋषभनाथ (७०.४२) : इस प्रतिमा में तीर्थकर को ध्यान-मुद्रा में सिंहासन पर बैठे हुए दर्शाया गया है। तीर्थंकर के बाल ऊपर की ओर कढ़े हैं तथा कुछ केश-गुच्छ कंधों पर लहरा रहे हैं । तीर्थंकर के कान लंबे हैं तथा उनके वक्ष पर श्रीवत्स-चिह्न अंकित है। उनके पार्श्व में कायोत्सर्ग तीर्थंकर तथा एक सेवक अंकित किये गये हैं। प्रतिमा के शीर्ष-भाग में पुष्पमाला-वाहक विद्याधर, गजारोही तथा नगाड़े बजाने वाले अंकित हैं जो तीर्थंकर के केवल-ज्ञान प्राप्त कर लेने की घोषणा कर रहे हैं । सिंहासन के पार्श्व में दोनों ओर यक्ष गोमुख तथा अपने वाहन गरुड पर आरूढ यक्षी चक्रेश्वरी अंकित है। सम्मुख-भाग में तीर्थंकर का लांछन वृषभ अंकित हैं। मानव-आकृति के शीर्षों के पृष्ठ-भाग में अंकित एक विशेष प्रकार का भामण्डल और सेवकों के अधोवस्त्रों के व्यवस्थित मोड़ तथा प्राकृतियों का प्रतिरूपण इस प्रतिमा को ग्यारहवीं शताब्दी की चेदि-कला की कृति निर्धारित करते हैं। वैसे भी इस प्रतिमा के पादपीठ पर संवत् १११४ की तिथि-युक्त एक दान-संबंधी अभिलेख उत्कीर्ण है। (चित्र ३४१)।
अजितनाथ (४८.४/१६) : इस प्रतिमा में एक पाद-पीठ पर स्थित सिंहासन पर तीर्थकर को ध्यानावस्थित मुद्रा में बैठा दर्शाया गया है। तीर्थंकर के सिर के पीछे एक भामण्डल है जि से प्रकाश की किरणें विकीर्ण हो रही हैं। तीर्थंकर के ऊपर तिहरा छत्र है जिसके दोनों ओर हाथी अंकित हैं। तीर्थंकर के पार्श्व में दोनों ओर दो बैठी हुई मुद्रा में तथा दो खड़ी मद्रा में तीर्थंकर तथा एक सेवक हैं। पादपीठ पर यक्ष महायक्ष और यक्षी अजितबला तथा तीर्थंकर का लांछन हाथी सम्मुख-भाग में अंकित है। नव-ग्रह तथा उपासक-आकृतियाँ भी अंकित हैं। समूची प्रतिमा मकर-तोरण से मण्डित है। तोरण पर मणियों की किनारी है तथा उसके शीर्ष पर पूर्ण-घट स्थित है। प्रतिमा के पृष्ठ-भाग पर संवत् १४७१ का अभिलेख उत्कीर्ण है।
संभवनाथ (४८.४/२६) : यह प्रतिमा संभवनाथ की चौबीसी है। मध्य में तीर्थंकर संभवनाथ बैठे हैं जिनके चारों ओर दो तीर्थंकर-प्रतिमाएं खड़ी हुई तथा इक्कीस तीर्थंकर-प्रतिमाएं ध्यान-मुद्रा में बैठी हुई दर्शायी गयी हैं। पादपीठ के दोनों किनारों पर संभवनाथ के यक्ष त्रिमख तथा यक्षी दुरितारी अंकित हैं। सिंहों के मध्य में तीर्थंकर का लांछन अश्व अंकित है । पृष्ठ-भाग के आधार पर दोनों ओर सिंह बने हुए हैं जो त्रिपर्ण मकर-तोरण से आ है। प्रतिमा में पीछे संवत् १५०७ की तिथि-युक्त एक अभिलेख है जिसमें प्रतिमा के दान-दाताओं और उसके गुरुत्रों के नाम का उल्लेख है।
अभिनंदन (४८.४/५८) : इस प्रतिमा में एक आयताकार पादपीठ पर स्थित सिंहासन पर तीर्थंकर को ध्यानावस्था में आसीन दर्शाया गया है। तीर्थंकर की आँखें श्री-वत्स चिह्न तथा आसन का सम्मुख भाग चाँदी और तांबे की पच्चीकारी से बना है। तीर्थंकर के भामण्डल से प्रकाश-किरणें
576
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org