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________________ अध्याय 38 ] भारत के संग्रहालय दक्षिण भारत तीर्थंकरों की प्रतिमाएं (५६.१५३/१७३; ऊंचाई २.१६ मी.) : एक प्रतिमा में पाश्वनाथ को कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हुए दिखाया गया है । पार्श्वनाथ के पीछे एक कुण्डलीबद्ध नाग खड़ा हुआ है जो अपने फण-छत्र से तीर्थंकर के सिर पर छाया कर रहा है। तीर्थंकर के सिर के ऊपरी भाग में पाँच समकेंद्रक अर्ध वृत्ताकारों का समूह तथा पत्र-पुष्पों की डिजाइनें उत्कीर्ण हैं। यह प्रतिमा चोलकालीन दसवीं शताब्दी की (चित्र ३४० क) है । दूसरी तीर्थंकर-प्रतिमा (५६.१५३/२; ऊँचाई १.३८ मी०), जो इसी काल की है, में तीर्थंकर को एक गद्दी युक्त सिंहासन पर बैठे हुए दर्शाया गया है। तीर्थंकर का प्रभा-मण्डल मकर-मुख तथा उसपर सवार मानवाकृति से अलंकृत है। सिंहासन के दोनों ओर आरोही सहित दुर्दात शार्दूल अंकित है। मकर-मुख से निकली हुई पत्र-पुष्पों की डिजाइन से युक्त अर्ध-वृत्ताकार भामण्डल उनके सिर के पीछे अंकित है। तीर्थकर के पार्श्व में दोनों ओर चमरधारी सेवक पत्र-पुष्पों के नीचे खड़े हैं जिनके सिरों पर करण्ड-मुकुट सुशोभित है। तीसरी तीर्थंकर-प्रतिमा (५६.१५८/१७७; ऊंचाई १.१६ मी.) में सुपार्श्वनाथ को कायोत्सर्ग-मुद्रा में दर्शाया गया है। तीर्थंकर के पीछे एक कुण्डलीबद्ध नाग खड़ा है जो अपने पांच फणी छत्र से उनके सिर पर छाया कर रहा है। तीर्थंकर के वक्ष पर दायें चूचुक के ऊपर श्रीवत्स-चिह्न तथा उनका लांछन शंख उनके दायें कंधे के ऊपर अंकित है। इस प्रतिमा का समय प्रारंभिक चोलकाल, दसवीं शताब्दी निर्धारित किया जाता है (चित्र ३४० ख) । चौथी तीर्थंकर-प्रतिमा (५६.१५३/ ३२१; ऊँचाई ३५ सें. मी.) में, जो समकालीन है, एक भामण्डल-युक्त तीर्थंकर को ध्यान-मुद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है। तीर्थंकर के सिर के पीछे भामण्डल और उनके पार्श्व में दोनों ओर सेवकों को खड़े हुए दर्शाया गया है। एच० के० चतुर्वेदी धातु-प्रतिमाएँ राष्ट्रीय संग्रहालय में जैन कांस्य-प्रतिमाओं का एक उत्तम संग्रह है। अधिकांशः प्रतिमाएँ पर्याप्त परवर्ती काल की और एक-जैसी ही हैं। तीर्थंकरों को आयताकार पादपीठ पर स्थित सिंहासन पर ध्यानमग्न पद्मासन-मुद्रा में बैठे हुए दिखाया गया है। इन प्रतिमाओं में अधिकतर संख्या पश्चिम-भारत से उपलब्ध प्रतिमाओं की है। तीर्थंकरों के ऊपर प्रायः तिहरेछत्र हैं जिनके पार्श्व में गंधर्व तथा हाथी अंकित हैं। कुछ प्रतिमाओं में तीर्थंकर की आकृतियाँ मकर-तोरणों से मण्डित हैं जिन्हें दो खड़ी हुई सेवक-प्राकृतियाँ प्राधार प्रदान किये हैं। कुछ प्रतिमाओं में अलंकृत तोरणों के शीर्ष पर पूर्ण-घट अंकित हैं। इन तोरणों के किनारे मणिभाकार अलंकृति से युक्त हैं तथा तोरणों से फुदने लटके हुए दर्शाये गये हैं। पादपीठों के सम्मख-भाग पर नवग्रह, चक्र और उसके दोनों ओर एक-एक हिरण तथा दायें किनारे पर बैठे एक-एक उपासक अंकित किये गये हैं। ये प्रतिमाएँ पीतल अथवा तांबे से निर्मित होर उसने दोनों पर एक प्रकव तिरण तथानदारों 575 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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