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________________ अध्याय 37 ] विदेशों के संग्रहालय सहित सामान्य रूप से अंकित हैं। ऋषभनाथ की इस प्रतिमा के लिए बारहवीं शताब्दी का समय निर्धारित किया जा सकता है। तीर्थंकर की यह आकृति कठोर दिखती है और उसमें कोमलता का अभाव है। कुछ जैन प्रतिमाओं से अंकित एक सरदल भी इस संग्रहालय में प्रदर्शित है जिसके उपरी केंद्रवर्ती फलक में एक देवकुलिका में तीर्थंकर को पद्मासन-जैसी मुद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है। तीर्थकर के हाथ गोद में रखे हुए हैं। मुख्य प्रतिमा के पार्श्व में दोनों ओर कायोत्सर्ग-मुद्रा में दो तीर्थंकर खड़े हैं। उनके नीचे ध्यान-मुद्रा में एक पंक्ति में सात तीर्थकर बैठे हुए हैं। सात तीर्थंकरों के इस समूह के पार्श्व की देवकुलिकाओं में दो अन्य तीथंकर उसी मुद्रा में अंकित है जिसमें उपयुक्त तीर्थंकर हैं। सरदल के एक किनारे पर हाथ में तलवार लिये, मकर से लड़ते हुए एक योद्धा को दर्शाया गया है। इस प्रकार का अभिप्राय इस क्षेत्र की मध्योत्तरकालीन प्रतिमाओं में सामान्यतः पाया जाता हैं। प्राकृतियाँ अनगढ़ और शैलीबद्ध हैं जो हमें मध्य काल के दौरान पश्चिम-भारत में निर्मित ऐसी ही अनगढ़ और शैलीबद्ध जैन कांस्य-प्रतिमाओं का स्मरण कराती हैं। बलुआ पत्थर में उत्कीर्ण राजस्थान-क्षेत्र की इस प्रतिमा का रचना-काल लगभग तेरहवीं शताब्दी निर्धारित किया जा सकता है। इस संग्रहालय में तीर्थंकर महावीर की एक प्रतिमा है जिसमें उन्हें सिंहासन पर ध्यान-मद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है (चित्र ३२५ ख)। यह प्रतिमा दक्षिणापथ की जैन कला के अध्ययन के लिए एक महत्त्वपूर्ण कला-कृति है। तीर्थंकर एक तिहरे छत्र के नीचे बैठे हैं, उनके सादा प्रभा-मण्डल के पार्श्व में एक चमरधारी सेवक अंकित है । उनका लांछन सिंह सम्मुख-भाग में प्रदर्शित है। उनकी दायीं ओर कुण्डलित सर्प के समक्ष कायोत्सर्ग-मुद्रा में पार्श्वनाथ खड़े हैं। सर्प का फण-छत्र उनके सिर के ऊपर फैला हया है। इस प्रतिमा की एक उल्लेखनीय रोचकता यह है कि महावीर की बायीं ओर बाहुबली की प्रतिमा है । इस प्रकार के एक समूह में इस तपस्वी का अंकन दुर्लभ है। यह यदा-कदा ही मिलता है। बाहुबली एक राजकुमार थे जो बाद में तपस्वी हो गये। इनकी प्रतिमा में उनके शरीर को लताओं द्वारा चारों ओर से आलिगित दर्शाया गया है। पादपीठ के पार्श्व से निकलते हुए पदमपुष्पों पर महावीर के यक्ष और यक्षी बैठे हुए हैं। पादपीठ के सम्मुख-भाग पर धर्मचक्र तथा प्रतीकात्मक रूप में बिन्दुओं द्वारा नवग्रहों को दर्शाया गया है। पृष्ठ-भाग के चौखटे के केंद्र में नगाड़ा बजाते हुए हाथों का तथा हाथ में माला लिये हुए एक विद्याधर का अंकन है। इसके ऊपर केंद्रवर्ती 1 तिवारी (एम एन पी). 'ए नोट ऑन द बाहुबली इमेज फ्रॉम नॉर्थ इंडिया' ईस्ट एण्ड वेस्ट, 23, 3-4, 347-53. 563 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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