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संग्रहालयों में कलाकृतियाँ
[ भाग 10 अलंकृत पादपीठ पर टिका रखा है। उनके केश धुंघराले हैं और पीछे की ओर एक बड़े से जुड़े के रूप में व्यवस्थित हैं। केश-सज्जा रत्नजटित शृंखलाओं से अलंकृत है। वह कानों में उत्कृष्ट आभूषण, गले में चार लड़वाला केंद्रवर्ती टिकड़े-युक्त गलहार धारण किये हुए है। उसकी पारदर्शी साड़ी के ऊपर कटि-भाग में अति अलंकृत मेखला आबद्ध है। उसकी मंद मदु मुसकान, पूर्ण उन्नत पुष्ट स्तन, क्षीण कटि तथा पीन नितंब उस नारी-सौंदर्य को मूर्तिमान करते हैं जिसकी अवधारणा भारतीय कलाकारों और कवियों ने अपनी कलाओं में की है। उसके दोनों शिशों में एक को उसकी गोद में बायीं ओर तथा दूसरे को उसके दायें पैर के पास दर्शाया गया है। उसके वाहन सिंह को सम्मुखभाग में अंकित किया गया है। तीर्थंकर नेमिनाथ की एक प्रतिमा में उन्हें एक बड़े प्रभा-मण्डल सहित एक छत्र के नीचे ध्यान-मुद्रा में बैठे हुए प्रदर्शित किया गया है । उनके पार्श्व में एक ओर एक सेवक और दूसरी ओर एक विद्याधर अंकित है । यह प्रतिमा अत्यधिक शैलीबद्ध है। इस प्रतिमा को शैलीगत रूप में बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी की उत्तरवर्ती पूर्वी गंग-शैली से संबद्ध किया जा सकता है।
बजेन्द्र नाथ शर्मा
म्यूजे गोमे, पेरिस
पेरिस के इस संग्रहालय में जैन कला की सबसे प्रारंभिक कला-कृति मथुरा-क्षेत्र के सफेद धब्बेदार लाल पत्थर में उत्कीर्ण एक तीर्थकर-प्रतिमा का शीर्ष-भाग है। तीर्थंकर के केशों को मस्तकभाग के ऊपर अंकित एक रेखा द्वारा इंगित किया गया है किन्तु इनमें ऊर्णा-बिन्दुओं का अंकन नहीं है। कान और नाक खण्डित हो चुके हैं तथा होंठ भी थोड़े-से क्षति-ग्रस्त हैं। प्रायः गोल चेहरा और उसके फैले हुए गाल संकेत देते हैं कि यह कुषाणकालीन कला-कृति है।
उड़ीसा से लायी गयी ग्यारहवीं शताब्दी की एक पाषाण-निर्मित प्रतिमा में तीर्थंकर ऋषभनाथ को कायोत्सर्ग-मद्रा में खड़े हुए दर्शाया गया है जिसमें उनकी भुजाएं धड़ के साथ सटी हुई लंब रूप में हैं (चित्र ३२५ क)। तीर्थंकर के सिर पर एक आकर्षक जटा-मुकुट है । केश-गुच्छ उसी प्रकार श्रेणी-बद्ध रूप में व्यवस्थित हैं जिस प्रकार लंदन स्थित ब्रिटिश म्यूजियम की तीर्थंकर ऋषभनाथ की एक प्रतिमा में दर्शाये गये हैं। केशावलियाँ कंधों पर लहरा रही हैं। कान की लटकनें लंबी हैं, सिर के पीछे एक सादा वृत्ताकार प्रभा-मण्डल है, उसके ऊपर एक तिहरा छत्र तथा उस वट-वृक्ष के पत्तों का अंकन है जिसके नीचे उन्होंने केवल-ज्ञान प्राप्त किया। पद्मवत् पादपीठ के नीचे एक छोटा-सा वषभ अंकित है। पादपीठ के सम्मुख-भाग में एक किनारे पर इस प्रतिमा का दान-दाता दंपति और दसरे किनारे पर नैवेद्य अंकित हैं। तीर्थंकर के पार्श्व में एक ओर चमरधारी सेवक भक्तिपरक मद्रा में खडा हा है तथा तीर्थंकर के दोनों ओर आठ नक्षत्र. जिसमें केतु नहीं है, अपने विशेष उपादानों
1 शाह (उमाकांत प्रेमानंद) पूर्वोक्त, चित्र 35.
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