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अध्याय 37 ]
विदेशों के संग्रहालय
आधार पर इस प्रतिमा के लिए लगभग आठवीं शताब्दी का प्रारंभिक पाल काल निर्धारित किया जा सकता है।
एक आयताकार पादपीठ पर ध्यान-मुद्रा में बैठे तीर्थंकर की धातु-प्रतिमा भी उपलब्ध है। यह प्रतिमा बुरी तरह क्षति-ग्रस्त हो चुकी है। संभवतः यह प्रतिमा बिहार-क्षेत्र से संबंधित है। यद्यपि तीर्थंकर का लांछन दिखाई नहीं देता तथापि कंधों पर लहराते हुए केश-गुच्छों के कारण उन्हें निश्चित रूप से तीर्थंकर ऋषभनाथ के रूप में पहचाना जा सकता है। अलंकरण-विहीन वृत्ताकार प्रभा-मण्डल, जिसकी परिधि से अग्नि-ज्वालाएं निकल रही हैं यह संकेत देता है कि इस प्रतिमा की रचना नवीं-दसवीं शताब्दी में पाल-काल में हुई होगी।
पूर्व-गंग शैली में निर्मित उड़ीसा की चार प्रतिमाएँ, जिन्हें पिछली शताब्दी में भारत से ले जाया गया, इस समय ब्रिटिश म्यूजियम के डिपार्टमेण्ट ऑफ दि ओरिएण्टल एण्टीक्विटीज के अंतर्गत ब्रिज कलेक्शन के नाम से प्रसिद्ध मूर्ति-संग्रह में सुरक्षित हैं । अत्यंत कुशलता से उत्कीर्ण एक पाषणप्रतिमा में ऋषभनाथ और महावीर को दिगंबर अवस्था में एक दूसरे के पार्श्व में खड़े आजानु-बाहु कायोत्सर्ग-मद्रा में दर्शाया गया है (चित्र ३१८ क)। ऋषभनाथ के सिर पर केशों का एक उन्नत जटा-मकुट है और केश कंधों पर लहरा रहे हैं।
महावीर के केश छोटे-छोटे धुंधराले छल्लों के रूप में हैं तथा उन्हें मस्तक पर उभरा हुआ अंकित किया गया है। सप्राण प्राकृतियाँ, लंबे कान घुटनों तक पहुंचने वाली लंबी वेलनाकार भुजाएं, सानुपातिक देह-यष्टि की विशेषताएँ तथा नासाग्र-दृष्टि, नेत्रों का अंकन उनके शांत, सौम्य एवं करुण भाव का प्रकाशन करता है। प्रतिमा के पादपीठ पर ऋषभनाथ का लांछन बैठा हुआ वृषभ तथा महावीर का लांछन सिंह अंकित है। इन लांछनों के साथ पादपीठ के केंद्र में ऐरावत हाथी पर आरूढ़ इंद्र की एक लघु आकृति तथा दायें कोने पर इस प्रतिमा के दान दाता-दंपति की आकृति अंकित है । मुख्य प्रतिमा के दोनों पाश्वों में एक-एक ओर चमरधारी सेवक खड़ा है। यह प्रतिमा ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारंभिक गंग-काल का एक उत्तम निदर्शन है।
पार्श्वनाथ की दो प्रतिमाओं में से एक में नाग की कुण्डली के आगे पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हुए हैं। उनके दिव्य शरीर के ऊपर नाग के सात फण दिखाई दे रहे हैं। तीर्थंकर के केश घुघराले छल्लों के रूप में हैं तथा सिर के ऊपर ऊँचे उभरे हुए हैं। तीर्थंकर की इस दिगंबर प्रतिमा के पार्श्व में एक चमरधारी सेवक है तथा प्रत्येक दिशा में चार नक्षत्र अंकित हैं। इस प्रतिमा के लिए बारहवीं शताब्दी का समय निश्चित किया जा सकता है।
इसके समसामायिक पार्श्वनाथ की एक अन्य उत्कृष्ट प्रतिमा में, जो कई जगह से खण्डित हो चुकी है, एक सुंदर प्रस्तुति देखने को मिलती है। हम प्रतिमा के पृष्ठ-भाग में नाग
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