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संग्रहालयों में कलाकृतियाँ
[ भाग 10 पारदर्शी साड़ी हमें पल्लू से प्राप्त उस प्रसिद्ध सरस्वती-प्रतिमा का स्मरण कराती है जो नयी दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित है (देखिए अध्याय ३८) । इस प्रतिमा के पार्श्व में दोनों
और ध्यानासीन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं। सरस्वती-प्रतिमा के ऊपरी भाग में तीर्थंकर पदमप्रभ की लघु प्राकृति अंकित है जिसमें पुष्पमालाएँ हाथ में लिये उड़ते हुए विद्याधर-दंपतियों की आकृतियाँ भी हैं । देवी के पैरों के समीप दो खड़ी हई सेविकाओं तथा दान-दाता-दंपति की प्राकृतियाँ अंकित हैं। इस प्रतिमा के लिए बारहवीं शताब्दी का परमारकालीन समय निर्धारित किया जा सकता है।
यद्यपि, गजरात के चौलक्यों तथा उनके उत्तरवर्ती काल में तीर्थंकरों और जैन धर्म के देवीदेवताओं की असंख्य धातु-निर्मित प्रतिमाओं की रचना हुई किन्तु उनमें से अधिकांश एक-जैसी ही हैं। क्योंकि वे एक बड़े पैमाने पर बहुत बड़ी संख्या में जैन धर्मानुयायियों, विशेष कर श्वेतांबरों के लिए उपासना-हेतु निर्मित की गयीं इसलिए उनकी सुंदरता और सौंदर्य-बोध पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। इस संग्रहालय में महावीर सहित पंच-तीथिका भी है जिसमें उन्हें सिंहासन पर बिछे आसन पर एक के ऊपर दूसरा पैर रखे ध्यान-मुद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है। उनके एक पार्श्व में कायोत्सर्गमुद्रा में एक तीर्थंकर तथा दूसरे पार्श्व में एक सेवक अंकित है। अन्य दो ध्यानावस्थित तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ उनके प्रभा-मण्डल के आस-पास प्रदर्शित हैं। मख्य प्रतिमा के शीर्ष के ऊपर की देवकूलिका में एक हाथी है जिसके ऊपर एक छत्र है। महावीर के लांछन सिंह को सम्मुख-भाग में उन दो झुके हुए सिंहों के मध्य अंकित किया गया है जो उनके सिंहासन को आधार प्रदान किये हुए हैं। सिंहासन के पार्श्व में एक अोर मातंग यक्ष को और दूसरी ओर सिद्धायिका यक्षी को, जो महावीर के यक्ष-यक्षी हैं, बैठे हुए दर्शाया गया है। पादपीठ के सम्मुख-भाग के केंद्र में धर्म-चक्र का प्रतीक बना हुआ है जिसकी दोनों ओर हरिण और नवग्रह अंकित हैं। दो मानव-आकृतियाँ जो इस प्रतिमा के दान-दाताओं की हैं, हाथों को अंजलि-मुद्रा में प्राबद्ध किये दोनों ओर के छोरों पर अंकित हैं। इनकी बड़ी-बड़ी उभरी हुई आँखें, सपाट नाक, गोल और भारी होंठ तथा सपाट धड़-भाग की विशेषताएं इस प्रतिमा के लिए उत्तरवर्ती, संभवत: पंद्रहवीं शताब्दी के समय का संकेत देती हैं।
तीर्थंकर की एक अन्य प्रतिमा भी इस संग्रहालय में है जो कुशलता से नहीं गढ़ी गयी है। यह प्रतिमा संभवत: बिहार की है जिसमें उन्हें एक छत्र के नीचे ध्यान-मुद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है और पार्श्व में दोनों ओर एक-एक चमरधारी हैं । प्रतिमा के मध्यवर्ती फलक पर एक नर और नारी की एक दूसरे के पार्श्व में बैठी हुई प्राकृतियाँ अंकित हैं जो संभवतः तीर्थंकर के यक्ष और यक्षी हैं। पुरुष अपनी गोद में एक बालक को बैठाये है तथा दूसरे हाथ में एक पुष्प धारण किये है। नारी का दायाँ हाथ खण्डित हो गया है। वह एक बालक को अपनी गोद में दायीं ओर और दूसरे को बायीं ओर बैठाये है। किसी लाक्षणिक चिह्न के अंकित न होने से इन प्राकृतियों को पहचानना संभव नहीं है। सबसे निचले फलक में पांच बौनी आकृतियाँ विभिन्न हाव-भाव और मुद्राओं में अंकित हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश से प्राप्त एक प्रतिमा, जो इस समय भारत कला भवन वाराणसी में प्रदर्शित है, इस प्रतिमा के साथ तुलनात्मक अध्ययन के लिए उपयुक्त रहेगी। शैलीगत
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