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सिद्धांत एवं प्रतीकार्थ
[भाग 9
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रेखाचित्र 46. अष्टापद (प्रभाशंकर प्रो० सोमपुरा के अनुसार) : 1. गर्भ-गृह; 2-5. आठ पीठिकाएं
चतुर्विशति-जिनालय
चतुर्विंशति-जिनालय में चौबीस देवकुलिकाएं या देवकोष्ठ अर्थात् लघु मंदिर होते हैं (रेखाचित्र ४१), उनमें एक-एक तीर्थंकर-मूर्ति होती है, उनका क्रम मंदिर के पूर्वी द्वार के दक्षिणी द्वार-पक्ष से प्रारंभ होता है और पश्चिमी द्वार के दक्षिणी द्वार-पक्ष पर समाप्त होता है जिससे आठ-पाठ की तीन पंक्तियां बन जाती हैं और बीच की पंक्ति मुख्य मंदिर के सामने पड़ जाती है । जो तीर्थकरमूर्ति मुख्य मंदिर में होती है उसे : उसके क्रमागत स्थान पर दुहराते नहीं वरन् उसके स्थान पर विद्यादेवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित करते हैं।
__इस प्रकार के मंदिर का निर्माण मध्यकाल से अबतक पर्याप्त प्रचलित रहा, यद्यपि चौबीस लघ मंदिरों की विन्यास-रेखा में विविधता रही। चतुर्विशति-पट्ट को चतुर्विशति-जिनालय का ही लन रूप माना जा सकता है, उसका उत्कीर्णन पर्वत-शिलानों पर भी किया गया।
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