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सिद्धांत एवं प्रतीकार्य
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2 पृथ्वियाँ या नरक एक के नीचे एक हैं और प्रत्येक तीनों प्रकार के पृथ्वी शब्द का प्रयोग सोद्देश्य है क्योंकि हमारी पृथ्वी की तरह इन और स्वर्गों में एक अंतर यह भी है कि नरक स्वयं पृथ्वी रूप है स्थित हैं.
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रेखाचित्र 45. भरत क्षेत्र ( मुक्त्यानंद सिंह जैन के अनुसार ) : 1. पूर्वी गोलार्ध का भाग ; 2. आर्य खण्ड ; 3. म्लेच्छ खण्ड; 4. विजयार्ध पर्वत; 5 सिन्धु नदी; 6. गंगा नदी 7. हिमवत् पर्वत; 8 पद्म हद; 9. रोहितास्या नदी
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होते हैं, इसीलिए उसे अस-नाली कहा गया है, उसकी ऊंचाई और गहराई लोक के ही बराबर क्रमशः
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१४ और ७ रज्जु है और चौड़ाई एक ही रज्जु है, जबकि लोक की सामान्य चौड़ाई ७ रज्जु है । लोक का घनफल ३४३ वर्ग-रज्जु है, उसके मध्य में १०० योजन ऊँचा भाग मनुष्य-लोक है जिसमें वैमानिक देवों और नारकियों को छोड़कर सभी जीव होते हैं; वैमानिक देव मनुष्यलोक के ऊपर स्वर्गलोक में रहते हैं और नारकी मनुष्यलोक के नीचे सात पृथ्वियों? अर्थात् नरकलोक में ।
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[ भाग 9
1 रज्जु का शब्दार्थ है रस्सी, यह भूगोल और खगोल की दूरी का एक माप है एक रज्जु उतनी दूरी है जिसे कोई देव एक समय अर्थात् काल की अल्पतम इकाई में 2,857,152 योजन की गति से उड़कर छह माह में पार करे, इस माप की गरिणतीय व्याख्या नही की जा सकती.
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वातवलयों और आकाश से घिरा हुआ है । पृथ्वियों का प्राधान्तल भी ठोस है। नरकों जबकि स्वर्ग विमान की भांति निराधार
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