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अध्याय 36 ]
स्थापत्य
आमलक ( रेखाचित्र ३६) और कलश ( रेखाचित्र ३७), जिसमें कर्णरेखाए प्रतिकर्ण या उपरथ और उरुशृंग भी निर्दिष्ट हैं) । आमलक के अंग हैं गल, ग्रण्डक, चंद्रिका और ग्रामलसारिका । कलश साधारणतः शिखर का सबसे ऊपर का भाग कहलाता है। उसके अंग हैं गल, अण्डक, कणिका और बीजपूरक। शुकनासा या शुकनासिका शिखर का वह भाग है जिसका आकार तोते की चोंच की भाँति होता है । शिखर के ऊपरी भाग पर दण्ड सहित ध्वज ( रेखाचित्र ३८ ) स्थापित किया जा सकता है।
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रेखाचित्र 31 मंदिर की विन्यास- रेखा (भगवान दास जैन के अनुसार)1 बलानक 2. श्रृंगार-बतुष्की 3. रंग- मण्डप 4. नव-यतुष्की 5. द्वार; 6. चतुष्की 7 गूढ मण्डप 8. जंपा 9. गर्भगृह 10. द्वार
द्वार की चौड़ाई ऊंचाई से आधी, अर्थात् सोलह अंगुल से सात हस्त के मध्य हो। द्वार की चौखट पर यथोचित स्थान पर तीर्थंकरों, प्रतीहार-युगल, मदनिका आदि की आकृतियाँ उत्कीर्ण की
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