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________________ सिद्धांत और प्रतीकार्य [ भाग 9 इस विधि से निर्मित भू-तल पर पीठ या अधिष्ठान अर्थात् चौकी का निर्माण किया जाये ( रेखाचित्र ३० र ३१ ) । पीठ या अधिष्ठान, परिस्थितियों के अनुसार, समतल भी बनाया जा सकता है ( रेखाचित्र ३२ ) और उसपर एक से पांच तक स्तर भी बनाये जा सकते हैं जिन्हें थर या प्रस्तर - गल कहते हैं ( रेखाचित्र ३३) । कोण या कर्ण, प्रतिरथ, रथ, भद्र और मुखभद्र पीठ के विभिन्न घटक या गोटा हैं, पर उन्हें भवन का ही अंग माना गया है, किन्तु नंदी, कणिका, पल्लव तिलक और तवंग पीठ के घटक होने पर भी प्रासाद के अलंकारक तत्वों में परिगणित है। जन 2 1 14 13 Jain Education International -- 109816 ।।।।। || 68 --- 11 1 3 22 रेखाचित्र 30. सम-दल प्रासाद (भगवान दास जैन के अनुसार ) : 1. गर्भ गृह; 14, 16, 17, 19, 21. नंदी 7, 15, 18 प्रतिकर्ण; 9, 13 20 उपरथ; 11. मण्डोवर के तेरह भंग होते हैं जो रेखाचित्र ३४-१ में (पृ. ५२२ दिखाये गये हैं। मण्डोवर शब्द पश्चिम भारत में प्रचलित है और संस्कृत के मण्डपवर या मण्डपपर शब्द का स्थानीय अपभ्रंश रूप प्रतीत होता है। मण्डोवर वास्तव में भित्ति या बाहरी दीवार है जिसपर प्रासाद के एक या अनेक मण्डपों की छत आधारित होती है सूत्रधार मण्डन ने मण्डोवर के चार भेद बताये हैं नागर, मेरु ( रेखाचित्र ३४-२ ), सामान्य ( रेखाचित्र ३४-३ ) और प्रकारांतर | 5 शिखर एक वर्तुलाकार छत है जो भवन पर उल्टे प्याले की भांति ऊपर को ऊँची होती जाती हैं। उसके ऊँचे भाग में चार अंग होते हैं : शिखर, शिखा, शिखांत और शिखामणि ( रेखाचित्र ३५ ) ; उसके अंगों का विभाजन एक अन्य प्रकार से भी किया जाता है: छाद्य, शिखर, आमलसार या 2-5 कर्ण - रेखा; 6, 8, 10, 12, भद्र - रथ; 22 भद्र- रथिका प्रसन्न कुमार प्राचार्य, डिक्शनरी ऑफ हिंदू फिटेक्चर 1927. लंदन धादि, 588. पृ 518 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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