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________________ सिद्धांत और प्रतीकार्थ [ भाग १ जायें (रेखाचित्र ३६) । जीर्णोद्धार के समय मंदिर का मुख्य द्वार स्थानांतरित न किया जाये और न ही उसमें कोई मौलिक परिवर्तन किया जाये। FANARTPHYSITHDAHEJ LAHRAININEHATI HANEYANE ALL रेखाचित्र 32. पीठ (भगवान दास जैन के अनुसार) : 1. ग्रास-पट्टी; 2. केवाल; 3. अंतर-पत्र; 4. कर्ण; 5. जाड्य-कुंभ; 6-8. भित्ति जगती पीठ या अधिष्ठान का एक घटक है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार जितनी भूमि पर मंदिर का भवन निर्मित होता है उतनी भूमि जगती है (रेखाचित्र ३१) । जगती को आधार मानकर ही प्रासाद या मंदिर के मुख्य भाग और उसके अंगों की प्रानुपातिक स्थिति निर्धारित होती है। पीठ के भूतल के रूप में दृश्य जगती पर चतुर्दिक द्वारों-सहित प्राचीर का निर्माण किया जाये। मण्डप के कई भेद हैं : प्रासाद-कमल जिसे गर्भगृह या मंदिर का मुख्य भाग भी कहते हैं; गूढ-मण्डप अर्थात् भित्तियों से घिरा हुआ मण्डप; त्रिक-मण्डप जिसमें स्तंभों की तीन-तीन पंक्तियों द्वारा तीन प्राड़ी और तीन खड़ी वीथियाँ बनती हैं; रंग-मण्डप जो एक प्रकार का सभागार होता है; और सतोरण बलानक अर्थात् मेहराबदार चबूतरे । मण्डप की चौड़ाई गर्भगृह की चौड़ाई से डेढ़गुनी या पौने-दोगुनी हो। स्तंभों की ऊँचाई मण्डप के व्यास की आधी हो, किन्तु अधिक ब्यावहारिक यह होगा कि स्तंभ की ऊंचाई सामान्यत: उसकी पीठ की ऊँचाई से चौगुनी हो, उसकी चौकी उसके पीठ से दोगुनी या तिगुनी हो और ऊर्ध्व भाग पीठ के बराबर या उससे दोगुना हो। जल-प्रणालिका या जल का प्रवाह बायीं ओर या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। 520 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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