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________________ सिद्धांत और प्रतीकार्थ दिया जाये । गृह का अग्र भाग भाग जितना ऊँचा हो उतना चाहिए । [ भाग 9 पृष्ठ-भाग से जितना सँकरा हो उतना ही अच्छा, अग्र भाग से पृष्ठही अच्छा । दूकान का अग्र भाग पृष्ठ-भाग से चौड़ा और ऊँचा होना मुख्य द्वार पूर्व में होना चाहिए, रसवती या पाकशाला नैर्ऋत्य अर्थात् दक्षिण-पश्चिम कोण में, शयनागार दक्षिण में, शौचालय या नीहारस्थान दक्षिण-पूर्व कोण में, भोजनशाला पश्चिम में, आयुधागार उत्तर-पश्चिम में, कोषागार उत्तर में और धर्मस्थान उत्तर-पूर्व में । गृह का मुख यदि पूर्व में न हो तो जिस दिशा में हो उसी को पूर्व मानकर उक्त क्रम को बनाये रखना चाहिए । प्रवेश द्वार से संयुक्त बाहरी बरामदा अलिंद है। पट्टशाला या मुख्य कक्ष और उससे संयुक्त कक्षशाला या छोटा कमरा तथा अन्य भाग आवासगृह की इकाई हैं । अलिंद १०७ अंगुल ऊँचा और ८५ अंगुल लंबा हो । गृह की चौड़ाई में ७० जोड़कर उसमें १४ का भाग देने पर जो भजनफल आये उतने हस्त शाला की चौड़ाई हो, और उसमें ३५ जोड़कर १४ का भाग देने से जो भजनफल श्राये उतने हस्त अलिंद की चौड़ाई हो, यह राजवल्लभ की मान्यता जबकि समरांगण सूत्रधार के अनुसार सब प्रकार के आवासगृहों में अलिंद की चौड़ाई शाला के आकार से आधी होनी चाहिए । अलिंद गृह के पृष्ठ-भाग 'में या बिलकुल दायें या बायें बना हो तो उसे गुजारी कहा जाता है, यह कदाचित् स्थानीय शब्द है । तीन अलिंद संबद्ध हो एकमात्र कक्ष भी गृह कहा जा सकता है। पट्टशाला से एक या दो या सकते हैं। उसकी दोनों भित्तियों में जालिक या जालीदार झरोखे हो सकते हैं और एक मण्डप या खुला कक्ष भी हो सकता है । जालक एक छोटे द्वार के समान होता है, अर्थात् बिना जाली की खिड़की । गवाक्ष और वातायन यदि जालीदार हों तो उनमें और जालिक में कदाचित् कोई अंतर नहीं होता । षड्दारु काष्ठ से निर्मित एक स्तंभ है । भारवट काष्ठ से निर्मित कड़ी है जिसे संस्कृत में पीठ या धरण कहते हैं । किसी भी स्थिति में न पृष्ठ-भाग की भित्ति में झरोखा, यहाँ तक कि छोटा-सा छिद्र भी, बनाया जाये । झरोखा इतनी ऊँचाई पर बनाया जाये कि पास वाले गृह के झरोखे से वह नीचा न पड़े । एक से अधिक तल वाले गृह में एक द्वार के ऊपर एक से अधिक द्वार, तथा किसी स्तंभ के ऊपर द्वार न बनाया जाये। आँगन तीन या पाँच कोणों का न रखा जाये । पशुयों के लिए घर के बाहर पृथक् कक्ष हो । आवासगृह का विस्तार गृहस्वामी की प्रतिष्ठा के अनुरूप होना चाहिए । राजा, प्रधान सेनापति, प्रधान मंत्री, युवराज, राजा के अनुज, रानी, ज्योतिपी, वैद्य और पुरोहित के गृह क्रमश: गुणित १३५ ६४ गुणित ७४ ६० गुणित ६७, ८० गुणित १०६ ४० गुणित ५३, ३० गुणित ३३३, ४० गुणित ४६, ४० गुणित ४६ और ४० गुणित ४६३ हस्त के हों । यह विस्तार १०८ Jain Education International 514 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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