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अध्याय 36 ]
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रेखाचित्र 28 वास्तुपुरुष-चक्र ( भगवान दास जैन के अनुसार ) 1. चरकी राजसी 2. पीलीपीछा; 3-4 ईश; 5. पर्जन्य; 6. जय; 7. इंद्र; 8. सूर्य; 9. सत्य; 10. भूश 11 आकाश 12. विदारिका 13. सविता 14 जंघा 15. अग्नि 16. पूषन् 17 वितच 18. गृह-क्षत 19. यम 20. गंधर्व 21. मूंग 22 मुग 23. पूतना 24. एकदा 25. जया 26. पितृ 27. नंदिन 28. सुग्रीव 29 पुष्पदंत; 30 वरुण; 31 असुर 32 शेष 33 पाप यक्ष्मन्; 34. पापा; 35. पाप-यक्ष्मन्; 36. अर्यमन्; 37. रोग; 38. नाग; 39. मुख्य; 40. भल्लाट 41. कुबेर; 42. शैल; 43. अदिति ; 44. दिति ; 45. आप और ग्रापवत्स, 46. अर्यमन्; 47. सावित्र और सविता;
48. पृथ्वीधर 49 ब्रह्मन् 50 वैवस्वत 51 रुद्र और रुद्रदास 52 मंत्र 53. इंद्र
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कि प्राचीन जैन ग्रंथकार विधि - निषेधों की तालिकाएँ बना देने मात्र की अपेक्षा दैनंदिन जीवन के चित्रण को अधिक महत्त्व देते थे ।
स्थापत्य
स्थापत्य के प्रारंभिक सिद्धांतों की दृष्टि से आवासगृह और मंदिर में अधिक अंतर नहीं । अतः जो अंतर है, केवल वही यहाँ उल्लेखनीय है ।
मुख्य द्वार या सिंह द्वार की दिशा और स्थिति का निर्धारण सतर्कतापूर्वक स्थापत्य के सिद्धांतों और नैमित्तिक विधानों के अनुरूप ही किया जाये । तल, कोण, तालु, कपाल, स्तंभ, तुला और द्वार नामक सात प्रकार का वेध या बाधक तत्त्व प्रत्येक संभव उपाय द्वारा आवासगृह से निकाल
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