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अध्याय 36
स्थापत्य
स्थापत्य संबंधी परंपराएं और सिद्धांत
प्राचीन काल में स्थापत्य के बोधक विभिन्न शब्द प्रचलित रहे, उनमें वास्तुशास्त्र अधिक व्यावहारिक और तर्कसंगत है । शिल्पशास्त्र का अर्थ भी प्रायः वही है किन्तु वह अधिकतर मूर्तिकला और मूर्तिशास्त्र का बोधक है । स्थापत्य शब्द उसकी अपेक्षा सीमित है और उससे स्थापत्य की किसी विशेष शैली के प्रतिष्ठापक वर्ग या घराने का, अथवा स्थापत्य या मूर्तियों की निर्माण - शाला का बोध होता है । परंपरागत घरानों के प्रतिरिक्त, स्थापत्य के कुछ प्रतिष्ठापक वर्ग और भी हैं । वैश्य, मेवाड़, गुर्जर, पंचोली और पांचाल समूचे पश्चिम भारत में काष्ठ शिल्प, पारंपरिक भवनों के निर्माण आदि में विशेष दक्ष माने जाते हैं। जयपुर और अलवर के गौड़ ब्राह्मणों की संगमरमर की शिल्पकला प्रसिद्ध है । कुछ वर्ग धातु-शिल्प और चित्रांकन में भी दक्ष हैं। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के जांगड़ काष्ठ शिल्प और पारंपरिक भवनों के निर्माण में प्रसिद्ध हैं 12
स्थापत्य की प्राचीन परंपरा इन घरानों की वंश परंपरा के साथ तो चलती ही रही, उसे अनेक ग्रंथों में लेखबद्ध भी किया गया । इन ग्रंथों में आदि से अंत तक प्राय: एक ही सिद्धांत का अनुसरण है, किन्तु उनमें परस्पर अंतर भी बहुत है; उनके उद्देश्यमूलक अंतर से उपर्युक्त घराने बने और विषयमूलक अंतर से स्थापत्य में नागर, वेसर, द्रविड़ आदि शैलियाँ प्रचलित हुई ।
1 सूत्रधार वीरपाल द्वारा लिखित और प्रभाशंकर प्रोघड भाई सोमपुरा द्वारा संपादित प्रासाद- तिलक ( अहमदाबाद, 1972, पृ 6 तथा परवर्ती) में अग्रलिखित घरानों का विवरण है: (1) पश्चिम भारत में सुप्रसिद्ध सोमपुरा घराना जो पारंपरिक स्थापत्य में विशेष दक्ष है और जिसके पास स्थापत्य संबंधी ग्रंथों का अच्छा संग्रह है; ( 2 ) उड़ीसा का महापात्र घराना; (3) दक्षिणापथ का पंचानन घराना जो अब पाँच व्यावसायिक वर्गों में विभक्त है --शिल्पी, सुवर्णकार, कांस्यकार, काष्ठकार और लोहकार; (4) आंध्र प्रदेश का तेलंगाना घराना, इसके भी वही पाँच व्यावसायिक वर्ग हैं; ( 5 ) द्रविड़ क्षेत्र का विराट विश्व ब्राह्मणाचार्य घराना जिसके सदस्यों के गोत्रनाम अगस्त्य, राज्यगुरु और षण्मुख - सरस्वती हैं ।
2 वही, पृ 8
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प्रसन्न कुमार प्राचार्य ने ऐसे दो सौ सात ग्रंथों के नाम यथासंभव विवरण के साथ दिये हैं, डिक्शनरी ग्रॉफ़ हिंदू किटेक्चर 1927. इलाहाबाद, परिशिष्ट 2, पृ 805-14.
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