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सिद्धांत एवं प्रतीकार्थ
[ भाग १
से भी होती है जिसमें पायाग-पट के लिए शिला-पटो शब्द का ही प्रयोग किया गया है। अभिलेख की अंतिम पंक्ति में स्पष्ट उल्लेख है कि यह शिला-पट अहंतों की पूजा के हेतु (अरहतपूजाये) है।
हेमचंद्र ने जैन मंदिरों में अंकित अष्ट-मंगलों में बलि-पटों का उल्लेख किया है। ये निश्चित रूप से आयाग-पट ही थे क्योंकि अबतक प्रकाश में आये कंकाली-टीला के प्रत्येक आयाग-पट (साधु कण्ह ओर आर्यवती के आयाग-पटों के छोड़कर, प्रथम खण्ड में चित्र १६) पर अष्ट-मंगलों में से कोई न-कोई प्रतीक अवश्य अंकित है और वह भी उसके मध्य में मुख्य अभिप्राय के रूप में। इस प्रकार, प्रायाग-पटों पर स्वस्तिक, त्रिरत्न, स्तूप, धर्मचक्र, स्थापनाचार्य (जिसे वासुदेव शरण अग्रवाल ने इंद्रयष्टि माना है) आदि के अंकन मिले हैं। कुछ आयाग-पटों पर तो आठों मंगल-प्रतीकों के अंकन किये गये, इसके उदाहरण हैं सीहनादिक द्वारा स्थापित प्रायाग-पट, भद्र-नंद्री की पत्नी द्वारा स्थापित
आयाग-पट और मथुरा के एक अज्ञात दानी द्वारा स्थापित पायाग-पट । उस समय की अष्ट-मंगलों की नामावलि आज प्रचलित श्वेतांबर और दिगंबर नामावलियों से कुछ भिन्न थी।
चैत्य वृक्षों के नीचे बने चबूतरे पर पूजा की वस्तुएँ स्थापित करने की पद्धति भारत में अब भी वर्तमान है, हम आज भी ग्रामों और नगरों में वृक्षों के नीचे ऐसे चबूतरों पर रखी हुई खण्डित या अखण्डित मूर्तियाँ और शिलाखण्ड देखते हैं । लगभग प्रथम शताब्दी ई० पू० का एक अच्छा उदाहरण मथरा की एक शिल्पांकित पट्टी पर विद्यमान है जिसमें एक वेदिका के मध्य वृक्ष के नीचे शिवलिंग का अंकन है।
औपपातिक सूत्र में पूर्णभद्र (एक सुपरिचित प्राचीन यक्ष) के चैत्य के वर्णन में किसी निर्मित मंदिर का कोई उल्लेख नहीं है, बल्कि शिलापट्ट-विशिष्ट-वृक्ष को ही यहाँ यक्ष-आयतन की संज्ञा दी गयी दिखती है, जैसा कि सूचि-लोम जातक (संयुक्त निकाय, ११,५) से व्यक्त होता है जिसमें एक 'टंकिते मंचो' को यक्ष के भवन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रतीत होता है कि शिलापट्ट पर किसी आकृति (यक्ष या कोई देवता) का अंकन या चैत्य वृक्ष के नीचे किसी देवता की मूर्ति की
1 वासुदेव शरण अग्रवाल. 'कैटलॉग ऑफ़ द मथुरा म्यूजियम', जर्नल प्रॉफ वि यू पी हिस्टॉरिकल सोसायटी 23,
भाग 1-2, पृष्ठ 69 तथा परवर्ती. औपपातिक सूत्र के इस अंश के इससे अधिक वर्णन के लिए द्रष्टव्य : शाह,
पूर्वोक्त, 1955, पृ 67 तथा परवर्ती. 2 उमाकांत प्रेमानंद शाह की टिप्पणियाँ द्रष्टव्य : 'वर्द्धमान-विद्या-पट', जर्नल प्रॉफ दि इण्डियन सोसायटी मॉफ़
मोरियण्टल आर्ट 9, 1941. /विशष्टि-शलाका-पुरुष-चरित 1, 3, 422, इत्यादि में समवसरण के वर्णन में हेमचंद्र ने लिखा है : तोरण पताकाओं और श्वेत छत्रों से अलंकृत ये और इनके नीचे विद्यमान अष्ट-मंगल प्रतीक
वैसे ही दिखते थे जैसे बलिपट्टों पर होते हैं. 3 स्मिथ, पूर्वोक्त, चित्र 9,7; प्रथम खण्ड में चित्र 3. मायाग-पटों के इससे अधिक वर्णन और विवेचन के लिए
द्रष्टव्य : शाह, पूर्वोक्त, 1955, पृ77-84, चित्र 7, 10, 11, 13, 14, 14 क, 14 ख आदि । 4 शाह, पूर्वोक्त, 1955, चित्र 67.
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