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सिद्धांत एवं प्रतीकार्थ
[ भाग १
लिखा है कि जिन-मूर्ति में दृष्टि नासाग्र तथा मुद्रा अभयंकर होनी चाहिए। उसके परिकर में अष्टप्रातिहार्य और यक्षों का समावेश भी होना चाहिए।
- वसुनंदी सैद्धांतिक ने अपने प्रतिष्ठासार-संग्रह में तीर्थंकर-मूर्ति का ताल-मान दिया है, उनका उल्लेख आशाधर ने किया है, वे बारहवीं शती (या इससे पहले) के हो सकते हैं। उन्होंने तीर्थंकर के मस्तक पर के उष्णीष का ताल-मान दिया है। यह विधान उन्होंने भी किया है कि तीर्थंकर-मूर्ति में शरीर और मुख पर केश नहीं होना चाहिए और वक्षस्थल पर श्रीवत्स लांछन होना चाहिए; भुजाएँ आजानु-लंब हों; पद-तलों पर शंख, चक्र, अंकुश, कमल, यव, छत्र आदि का अंकन होना चाहिए । तीर्थंकरों की मूर्तियाँ या तो खड़ी (कायोत्सर्ग) हों या आसीन (पर्यकासन या पद्मासन)। जिन-मृतियों के साथ अष्ट-प्रातिहार्य भी दिखाये जाने का विधान है।
तीर्थंकर-मूर्तियाँ अबतक केवल दो मुद्राओं में देखने में आयी हैं, या तो खड़ी या प्रासीन । आसीन मूर्तियों में दक्षिण भारत की अधिकांश अर्ध-पर्यकासन में और उत्तर भारत की पालथी-सहित पूर्ण-पदमासन में हैं; परंतु विभिन्न तीर्थंकरों की मुद्राएँ भी विभिन्न बनाने का विधान नहीं है। सभी तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उक्त दोनों में से किसी भी मुद्रा में बनायी गयीं। तथापि, जैन ग्रंथों में विभिन्न तीर्थंकरों की उन मुद्राओं के उल्लेख हैं जो उन्होंने अपने निर्वाण-काल में धारण की । इक्कीस तीर्थंकरों ने (और दिगंबर परंपरा के अनुसार भरत और बाहुबली ने भी) कायोत्सर्ग-मुद्रा में ध्यानमग्न रहते हुए और तीन तीर्थंकरों ऋषभ, नेमि और महावीर ने ध्यान-मुद्रा में आसीन रहते हुए निर्वाण प्राप्त किया। इन तीर्थंकरों की मूर्तियों की मुद्राएं भी ये ही हों, ऐसा विधान व्यवहार में स्वीकार्य न हो सका, यद्यपि आवश्यक नियुक्ति (गाथा ६६६) जैसे प्राचीन ग्रंथ में भी वह विधान किया गया कि तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उसी मद्रा में बनायी जानी चाहिए जिसमें उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया हो।
- इस कल्पकाल की अवसर्पिणी के भरत-क्षेत्र के तीर्थंकरों के वर्ण दोनों संप्रदायों में उल्लिखित हैं। दिगंबर संप्रदाय के अनुसार सोलह तीर्थंकरों का वर्ण स्वर्णिम था, केवल चंद्रप्रभ और पुष्पदंत का श्वेत, सुपार्श्व और पार्श्व का हरा, मुनिसुव्रत और नेमिनाथ का गहरा नीला और पद्मप्रभ और
1 प्रतिष्ठासार-संग्रह (पाण्डुलिपि), अध्याय 4; श्लोक 1, 2, 4, 64, 69. वसुबिंदु (जयसेन) का 'प्रतिष्ठा-पाठ',
श्लोक 70 भी देखिए। 2 देखिए चेइय-वंदम महाभास (की संस्कृत छाया), गाथा 80-81, पृ 15./तिलोय-पणती, 4, 1210. पृ 302,
और जटासिंह नंदी (लगभग छठी शती) वरांग-चरित 2,7, 90. पृ 272 के अनुसार केवल ऋषभ, वासुपूज्य
और नेमि ने अासीन-मुद्रा में निर्वाण प्राप्त किया, शेष ने खड़ी हुई मुद्रा में. 3 तिलोय-पण्णत्ती, 4, 588, पु 217./प्रतिष्ठा-सारोद्धार, 1, 80-81. पद्म-पुराण, पर्व 20, इलोक 63-66.
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