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अध्याय 33 ]
अभिलेखीय सामग्री
मध्यकालीन मूर्ति - शिल्प के उदाहरण के रूप में ऐलोरा की विशाल शांतिनाथ - मूर्ति प्रस्तुत की जा सकती है । उसके पादपीठ पर उत्कीर्ण है कि १२३४-३५ ई० में चक्रेश्वर नामक एक व्यक्ति ने यह अभिलेख अंकित कराया । 1
मृत महापुरुष की स्मृति में निषीधि अर्थात् स्तंभों के निर्माण का प्रचलन भी मध्यकालीन कर्नाटक में था । ऐसा एक स्तंभ बीजापुर जिले के चंदकावते में हैं, उसपर उत्कीर्ण है कि यह निषीधिस्तंभ सूरस्त गण के माघनंदि - भट्टारक की मृत्यु की स्मृति में स्थापित किया गया 12
जब इस क्षेत्र का विशेषत: दक्षिणी भाग विजयनगर साम्राज्य के शासकों के प्रभाव में आया तब जैन धर्म की प्रगति निरंतर होती रही क्योंकि इस साम्राज्य के माण्डलिक सामंत जैन धर्म के प्रबल समर्थक थे । इसलिए इन माण्डलिक सामंतों के अधिकार क्षेत्रों में स्वभावतः अनेकानेक जैन स्थापत्य - कृतियों का निर्माण हुआ । मूडबिदुरे की गुरुगल बस्ती का नाम सर्वप्रथम लिया जा सकता है जिसे किये गये दान का उल्लेख १३६० ई० के एक अभिलेख में हुआ है । विजयनगर सम्राट् देवार्यद्वितीय के शासनकाल में ( १४३० ई० ) मूडबिदुरे में त्रिभुवन-चूड़ामाणि - महा चैत्य का निर्माण हुआ, इसमें एक मनोहारी और उल्लेखनीय स्तंभ- मण्डप ( १४५१ ई० ) है और इसे पश्चिम तट की शैली में निर्मित स्थापत्य का एक सुंदर उदाहरण माना जाता है । 4 कार्कल के माण्डलिक सामंतों ने गोम्मटेश्वर की दो विशालाकार मूर्तियाँ बनवायीं और उनपर अभिलेख उत्कीर्ण कराये, एक कार्कल में १४३२ ई० में' और दूसरी वेणूर में १६०४ ई० में । कार्कल का चतुर्मुख बस्ती नामक मंदिर और उसी ग्राम के हरियंगडि नामक स्थान पर स्थित मान- स्तंभ विजयनगर काल की जैन कला के दो और विशेष उदाहरण 1
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1 देसाई (पीबी). जैनिज्म इन साउथ इण्डिया. 1957. शोलापुर. पृ 99.
2 एनुअल रिपोर्ट ऑन साउथ इण्यिन एपिग्राफी, 1936-1937. परिशिष्ट ई., क्रमांक 15.
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साउथ इण्डियन इंस्क्रिप्शंस, 7, क्रमांक 299.
वही, क्रमांक 197.
एपिग्राफिया इण्डिका, 7. 1902 1903, पृ 109-110.
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